मानवीय रिश्तो में गिरावट पर आलेख
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आज पूंजीवाद और समाजवाद का अंतर धीरे धीरे हमारे सामने आने लगा है लेकिन दौलत और शौहरत के पुजारी मुट्ठीभर लोग इस सच्चाई को लगातार झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं कि पैसा कमाने की होड़ समाज से रिश्ते नातों, धर्म, मर्यादा और नैतिकता को पूरी तरह ख़त्म करती जा रही है। पूंजीवाद के सबसे बड़े वैश्विक गढ़ अमेरिका की हालत दिन ब दिन पतली और समाजवाद के आज भी मज़बूत किले चीन की हालत लगातार मज़बूत होने से भी हमारी आंखे नहीं खुल रही हैं। सच यह है कि आज हम इतने स्वार्थी और एकांतवादी होते जा रहे हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी मनमानी करने के लिये हम रिश्तों नातों को कच्चे धागों की तरह तोड़ने में एक पल भी नहीं लगाते।
अगर थोड़ा झगड़ा और रूठना मनाना होकर ये सम्बंध फिर से प्यार मुहब्बत की डोर में बंध जायें तो फिर भी आपसी तालमेल और साझा जीवन का एक रास्ता निकल सकता था लेकिन आज तो हालत यह हो गयी है कि साझा परिवार टूटते जा रहे हैं। आज भाई भाई के बीच स्वार्थ की दीवार उूंची होती जा रही है। बच्चे मांबाप को बोझ समझने लगे हैं। हम अपनी महान सभ्यता और संस्कृति के उन बेहतरीन पहलुओं को भी भुलाते चले जा रहे हैं जिनकी वजह से भारत कभी पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता था। जब हम खून के रिश्ते ही संजो कर नहीं रख पा रहे तो ऐसे में पड़ौसी और मानवता का रिश्ता निभाना तो दिन में सपना देखना जैसा माना जा सकता है लेकिन मैं दावे से कह सकता हूं कि आज भी इंसान और इंसानियत का पाक और मुहज़्ज़ब सम्बंध बड़ा मानने वाले लोग मौजूद हैं। इसका सुखद अनुभव मैंने खुद पर्सनली किया है।
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