मानवता ही सर्व श्रेष्ठ धर्म
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मनुष्य एक द्विपद प्राणी है, जिसे रचनाकार ने शारीरिक तौर पर तो जटिल बनाया ही है एवं मस्तिक से भी बहुत अनोखा बनाया है। हम हमारे सभी कार्य काफी प्रभावी रूप से कर सकते हैं, हम हमें उपलब्ध संसाधनों को भी समझदारी से उपयोग में ला सकते हैं, अपने जीवन में अनगिनत विचारों, गुणों और अपने आस – पास में हो रही चीजों को भी समझ सकते हैं तथा बोलकर और समझाकर साझा कर सकते हैं।
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मानव ईश्वर की सबसे उत्तम रचना है। मानव को सर्वोच्च पद उसकी संरचना से नहीं बल्कि उसके गुणों से प्राप्त हुआ है। सहयोग, सदाचार व सद्भाव जैसे मानवीय गुण ही मानव को अन्य जीवों से श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं। मानव का मानव के साथ ही अन्य जीवों के प्रति समर्पण ही सर्वोत्तम धर्म है।
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