Hindi, asked by Mousaeed2464, 1 year ago


मानवता का त्रास हरे हम पर निबंध -

Answers

Answered by riya2470
4

Answer:

मानवता

सुख, समृद्धि एवं शांति से परिपूर्ण जीवन के लिए सच्चरित्र तथा सदाचारी होना पहली शर्त है, जो उत्कृष्ट विचारों के बिना संभव नहींहै। हमें यह दुर्लभ मानव जीवन किसी भी कीमत पर निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं जाने देना चाहिए। लोकमंगल की कामना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। केवल अपने सुख की चाह हमें मानव होने के अर्थ से पृथक करती है। मानव होने के नाते जब तक दूसरे के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किंतु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता। हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा हो सकेगा जब हम समाज को ही परिवार मानें। मानवता में ही सज्जानता निहित है, जो सदाचार का पहला लक्षण है। मनुष्य की यही एक शाश्वत पूंजी है। मनुष्य भौतिकता के वशीभूत होकर जीवन की जरूरतों को अनावश्यक रूप से बढ़ाता रहता है, जिसके लिए सभी से भलाई-बुराई लेने को भी तैयार रहता है, लेकिन उसके समीप होते हुए भी वह अपनी शाश्वत पूंजी को स्वार्थवश नजरअंदाज करता रहता है।

यदि हमने तमाम भौतिक उपलब्धियों को एकत्र कर लिया है और हमारा अंतस जीवन के शाश्वत मूल्यों से खाली है तो हमारी सारी उपलब्धियां निरर्थक रह जाएंगी। मानवता के प्रति समर्पित होकर नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध हों, मानव जीवन की सार्थकता इसी में निहित है। जीवन की वास्तविक सुख-शांति इसी में है। जीवन में नैतिकता की उपेक्षा करने से आत्मबल कमजोर होता है। मानव जीवन में जितने भी आदर्श उपस्थित करने वाले सद्गुण हैं वे सभी नैतिकता से ही पोषित होते हैं। मनुष्य को उसके आदर्श ही अमरता दिलाते हैं। आदर्र्शो का स्थान भौतिकता से ऊपर है। मानव मूल्योंकी तुलना कभी भौतिकताओं से नहीं की जा सकती, यह नश्वर हैं। अभिमान सदैव आदर्र्शो और मानव मूल्यों को नष्ट कर देता है। अत: इससे सदैव बचने की जरूरत है।

मुझे आशा है कि आपको मदद मिली.....!!

Answered by dackpower
0

Answer:

मानव होना एक त्रासदी में एक अभिनेता होना है, जो आज तक, हमारी समझ से अधिक है; एक नाटक जिसमें सबसे अधिक, यदि सभी नहीं हैं, तो अभिनेताओं में अंतर्निहित चरित्र दोष और परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जो कि निपटने की उनकी क्षमता से परे हैं। सवाल यह है: क्या हमारे पास समय है, क्या हमारे पास क्षमता है, नाटक को कॉमेडी में बदलने की? या, बहुत कम से कम, यह एक सुखद अंत दे?

अधिकांश क्लासिक त्रासदियों में, एक महत्वपूर्ण कार्य या दृश्य होता है, जो नाटक के मध्य के आसपास होता है, जो कि महत्वपूर्ण बिंदु है: एक ऐसा बिंदु जिस पर दुखद नायक के निहित चरित्र दोष सामने आते हैं; एक बिंदु, जिसमें से एक बार गुजर गया, कोई वापसी नहीं हुई। पृथ्वी पर मानव जीवन के नाटक में यह कृत्य अब खेला जा रहा है। यह ऐसा कार्य है जो मानवजनित जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित है।

Similar questions