Hindi, asked by piyarsalaria5438, 1 year ago

Ma ओर बेटी के बीच आज बढते फैशन की बुराई का वर्णन करते

Answers

Answered by dharishani1
0

फैशन एक ऐसा शब्द है जो युवाओं, वृद्धों, महिलाओं व बच्चों में समान रूप से लोकप्रिय है । कपड़ों, खाद्य पदार्थों, फास्ट फूड, नृत्य (पश्चिमी धुनों पर), विवाहों, समारोहों इत्यादि पर फैशन की अमिट छाप दिखाई पड़ती है । फैशन कभी स्थिर नहीं रहता ।

यह एक परिवर्तनवादी नशा है जो सिर पर चढ़ कर बोलता है । यदि किसी महिला ने पुराने स्टाइल या डिजाइन की साड़ी या लंहगा पहना हो तो संभव है कि उसे “Out of Fashion’’ की संज्ञा दी जाए । यह भी संभव है कि अगली किटी पार्टी पर उसे आमंत्रित ही न किया जाए ।

आज के दौर में जो भी व्यक्ति “आउट ऑफ फैशन’’ हो जाता है, उसकी “मार्केट वैल्यू” गिर जाती है । अत: उसे स्वयं को भौतिकवाद की दौड़ में अपना स्थान सुनिश्चित करने हेतु कपड़ों, खानपान, घर, बच्चों, जीवनसाथी, दफ्तर, कारोबार इत्यादि के संदर्भ में नवीनतम फैशन की वस्तुओं, सुविधाओं और विचारों को अपनाना पड़ता है । फैशन एक भेड़चाल की तरह है ।  

सृजनात्मक शक्तियों वाले कुछ लोग नये फैशन वाली वस्तुओं को निर्मित (डिजाइन) करनें में निजी कम्पनियों की सहायता करते हैं । ये कम्पनियां प्रचार-प्रसार, व्यक्तिगत बिक्री दलों और प्रोपेगैण्डा के जरिए इन उत्पादों या सेवाओं को विश्व भर में प्रचारित कर देती हैं ।

लोगों को हर पल नये कपड़े, खाने की वस्तुएं, गहने, चमड़े का सामान, संगीत, घर, दफ्तर या भाषाएं चाहिए । यही लोग इन नई वस्तुओं और सेवाओं को खरीद कर स्वयं को धन्य मानते हैं । वे सोचते हैं कि वे स्वयं को नये फैशन के अनुरूप ढ़ाल रहे हैं । कम्पनियां इस सारे तंत्र में सबसे अधिक लाभ अर्जित करती हैं । फैशन डिजाइनरों की भी चांदी हो जाती है ।  

फैशनेबल होना बुरा नहीं है । परन्तु दकियानूसी कपड़ों को फैशनेबल कहना या कम-से-कम वस्त्र पहनने का नाम भी तो फैशन नहीं है । फैशन शो तो नंगेपन की पराकाष्ठा तक पहुंच जाते हैं । ऐसा लगता ही नहीं कि फैशन मॉडल किसी नये डिजाईन के कपड़ों का प्रदर्शन कर रही है । रैम्प पर चलती हुई सुन्दरियां व युवक अपने मांसल अंगों का प्रदर्शन करते नजर आते है । दर्शक गण और टी॰वी॰ दर्शक उनके अंग प्रदर्शन से लुत्फ उठाते हैं । कपड़ों पर ध्यान तो शायद ही किसी दर्शक का हो ।

आये दिन भारत में भी फैशन शो होने लगे हैं । विचित्र कपड़ों की एक नुमाईश नवम्बर, 2006 में मुम्बई के नेशनल सेन्टर फॉर परफार्मिंग आर्ट्स में की गई । उस शो में जे॰जे॰ बलाया, मनीष अरोड़ा, रोहित बल, रोहित गांधी, सीमा खान आदि के परिधानों को सुन्दर मॉडलों ने रैम्प पर पेश किया । दर्शकों में प्रैस के लोग अधिक थे और कपड़ों के खरीदार कम । इसके अलावा, महिला मॉडलों की संख्या पुरूष मॉडलों से कहीं अधिक थी, जो कि इस प्रकार के फैशन सप्ताहों में एक आम प्रवृत्ति है ।

इस फैशन सप्ताह के समाप्त होने तक कोई विशेष विक्रय नहीं हो पाया । इसका अर्थ यह है कि लोगों की विकृत फैशन में कोई रूचि नहीं है । उदाहरणतया, कोई भी परिधान ऐसा नहीं था जिसको धारण करके कोई युवती अपने कॉलेज, दफ्तर या बाजार की ओर उम्मुख हो सके । रंगों की इस भरमार में फैशन डिजाइनर यह भूल चुके हैं कि खरीदारों को उनके द्वारा निर्मित परिधान पहनने भी पड़ सकते हैं । सत्य और मिथ्या का यह एक अनोखा मेल था जो कम विक्रय के रूप में देखने को मिला ।

भारत की डिजाइनर परिधान की टर्नओवर विश्व के डिजाइनर परिधान की टर्नओवर का केवल 0.1 प्रतिशत है । हमारे देश में फैशन शो तो बराबर आयोजित हो रहे हैं लेकिन इनसे आम जनता का लगाव नहीं हो पा रहा है । इस क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है । यदि यही हाल रहा तो भारतीय (फैशन) परिधानों का विश्व के बाजार में प्रवेश कैसे हो पाएगा?

मीडिया ने एक अन्य मुद्‌दा भी प्रकाश में लाने की कोशिश की है । एक रैम्प मॉडल को एक शो के 25,000 रुपए मिलते हैं । एक एम्बाईडरी करने वाली महिला को अपना कठिन काम करने के लिए केवल दस रुपए प्रति घंटा मिलता है । कपड़े सीने वाले निर्धन ही रहते हैं जबकि कैमरों, प्रकाश और पांच-तारा होटलों की चकाचौंध में जीने वाले फैशन डिजाइनर लोगों की आखों के तारे बन जाते है । यह प्रवृत्ति भी समाप्त की जानी चाहिए ।

हम फैशन और उसके बदलते हुए चलन से कभी भी विमुख नहीं हुए । परन्तु हमारा यह मत है कि फैशन परिधान सुरूचिपूर्ण सस्ते तथा सामाजिक दृष्टिकोण से स्वीकार्य होने चाहिये । इसी सिद्धान्त को हमें अन्य प्रकार की फैशन प्रवृत्तियों पर भी लागू करना होगा ।

संक्षेप में, फैशन एक ऐसा छलावा है जिसने कुछेक को छोड़ कर अन्य किसी भी व्यक्ति या संस्था का उद्धार नहीं किया है । वैश्वीकरण के इस युग में फैशनेबल वस्तुओं और सेवाओं का स्वागत है । परन्तु ये सभी वस्तुएं सामाजिक और आर्थिक मानदण्डों पर खरी उतरनी चाहिये । आशा है कि फैशन डिजाइनर, वस्त्र निर्माण व अन्य क्षेत्रों में रत कम्पनियां और फैशन शो के आयोजक इस सरल परंतु गंभीर तथ्य को स्वीकार करेंगे ।


superboy123: hii
superboy123: i am here
Similar questions