Hindi, asked by sonali74ghosh, 3 months ago

मा पाएका।2।।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।३।।​

Answers

Answered by kumarimanisha8219
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Answer:

तीसरे दोहे में कबीरदास जी ने मन की चंचलता का वर्णन किया है। उनके अनुसार इंसान जीभ और माला से भले ही प्रभु का नाम जपता रहता है, लेकिन उसका मन अपनी चंचलता त्याग नहीं पाता है।

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