Hindi, asked by nt355799, 1 month ago

मैं प्रकृति का पुजारी हूं और मनुष्य को प्रकृति के रुप में देखना चाहता हूं जीवन मेरे लिए आनंद में कीड़ा है जहां कुपसा से ईर्ष्या और जलन का कोई स्थान नहीं मैं भूत की चिंता नहीं करता मेरे लिए बर्तमान ही सब कुछ भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है ज्ञानी कहते हैं होठों पर मुस्कुराहट ना आए आंखों से आंसू ना आए मैं कहता हूं अगर तुम हंस नहीं सकते तो तुम मनुष्य नहीं पत्थर वह ज्ञान जो मनुष्य को पीस डाले ज्ञान नहीं कोल्हू है​

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Answered by shreemaandss
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Answer:

bhaya aap jo bol raha hai vo toh ha sahi lakin insaan nahi manega

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