Hindi, asked by AedanKyle9296, 10 months ago

मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बनेफिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गतिरोधक शूल बने। अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है। क्या वह केवल अवसाद मलिन झरते आँसू की माला है? वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याली हैवे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है। मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहर्य पहचान लियामैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है! मैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढता हूँ। कुचला जाकर भी धूली-सा आँधी-सा और उमड़ता हूँ। मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने। इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने! भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बनेतेरी पुकार-सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने!
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपनी कैसी चाह (इच्छा) को व्यक्त किया है?
(ii) प्रेम की वारतविक अनुभूति से कैसो लोग अनभिज्ञ रह जाते हैं?
(iii) कवि ने धूल से क्या प्रेरणा ली है?
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में निहित उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
(v) "इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने।" प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

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Answered by RemarkableBrainy
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Answered by uk71298
0

Answer:

धूल बने।

है

प्रस्तुत हूँ चाहे मिट्टी जनपद की फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गतिरोधक शूल बने। अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है- क्या वह केवल अवसाद- मलिन झरते झरते आँसू की माला है? वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है- वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहनकारी हाला मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया- मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है! मैं कहता हूँ मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़तो कुचला जाकर भी धूली-सा आँधी सा और उमड़ता हूँ मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने! भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने- तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने !

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