मेरी आदर्श महिला पर निबंध
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पुराने ज़माने से ही भारतीय समाज में नारी किसी-न-किसी पर आश्रित रहती आई है।बचपन में नारी माता-पिता के आश्रय में रहती है, विवाह के बाद पति के संरक्षण में तथा बुढ़ापे में बच्चों की आश्रित बनती है।प्राचीन काल से उसकी स्थिति हर रूप में पराधीन रही है।उसकी दीन-हीन दशा का कारण घर की संपत्ति पर उसका अधिकार न होना था।पुरुष धन कमाता था, अतः धन पर पुरुष का अधिकार ज़्यादा होता था।आधुनिक काल में नारी की स्थिति में परिवर्तन हुआ है नारी घर से बाहर निकली, शिक्षा और बाहरी वातावरण के प्रभाव से उसमें आत्मविश्वाश बढ़ा, तभी वह आज सभी क्षत्रों में पुरुष से टक्कर ले रही है और सभी क्षत्रों में सफलता के झंडे गाड़ रही है।जहाँ वह निर्णय लेने में सक्षम हो गई है, वहीँ परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी भी संभालने लगी है।इन सबके बावजूद भारतीय नारी घर और परिवार का भी विशेष ध्यान रखकर दोहरी भूमिका में खरी उतर रही है।आज भारतीय नारी कहलाने में युवतियों/महिलाओं को गर्व की अनुभूति होती है।
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मेरी आदर्श महिला - मेरी माँ
मेरी माँ दुनिया की सबसे प्यारी व अच्छी माँ है। बचपन से आज तक मैं सदैव माँ के साथ रही हूँ। माँ के द्वारा हमेशा मेरी जरूरतों का ध्यान रखा गया। जब मैं छोटी थी, तो माँ ही मुझे नहलाती व तैयार करती थी। वह मेरे साथ खेलती थी और मुझे पढ़ाती भी थी। मेरे मुँह से निकला पहला शब्द माँ ही था। मेरे द्वारा सीखा गया पहला पाठ माँ ने ही सिखाया था। मेरे गिर जाने पर मुझसे ज्यादा वह रोती थी। वह मुझे मेरी गलती में डांटती भी थी परन्तु थोड़ी देर में मुझे प्यार भी करती थी।
वह सदैव मेरे साथ मेरी छाया के समान रहती थी और आज भी हैं। पिताजी भी मेरा बड़ा ध्यान रखते हैं परन्तु माँ की बात ही अलग है। मैं अपनी माँ से स्वयं को अधिक करीब पाती हूँ। ऐसा कभी नहीं हुआ की मुझे माँ की जरूरत हो और उन्हें मेरा साथ न दिया हो। उन दिनों की बात है जब मेरे स्कूल में गरमी की छुट्टियाँ पड़ी हुई थी। मैं सारा-सारा दिन धूप में खेलती और जब मौका मिलता माँ की आँख बचाकर बाहर खेलने चली जाती। माँ मना किया करती थी की बाहर बहुत गरमी है। इतनी गरमी में नहीं खेलना चाहिए। लेकिन मैंने माँ की एक बात नहीं मानी।
एक दिन माँ के सो जाने पर मैं घर से बाहर निकल गई व अपनी सहेलियों के साथ दिनभर खेलती रही। उस दिन अधिक गरमी हो रही थी। अचानक में बेहोश हो गई। मेरी सहेलियों ने माँ को बुलाया। मेरे कारण माँ बहुत परेशान रही। डाक्टर ने बताया की मुझे गरमी से ऐसा हुआ है। माँ मेरी दिन-रात सेवा करती रही। वह मेरे लिए नाना प्रकार के खेल-खिलौने लाई। वह मेरे साथ खेलती ताकि मैं बाहर न जाऊँ। इस घटना ने मुझे इस बात का एहसास कराया की माँ मुझे कितना स्नेह करती है। मैं और मेरी माँ हम दोनों का रिश्ता सखियों जैसा है।
वह कभी मेरे साथ माँ जैसा व्यवहार नहीं करती। मेरी वो सबसे अच्छी दोस्त है। उनके साथ जो खुशी मुझे मिलती है, वह अन्य किसी के साथ नहीं मिलती। माँ के बिना मैं अपनी कल्पना भी नहीं कर सकती। माँ भी मेरे बिना एक पल नहीं रह पाती। मेरे कारण वह बाहर ज्यादा आती-जाती भी नहीं है। मेरे परीक्षा के दिनों में तो वह मेरे साथ ही पूरी-पूरी रात जागती रहती हैं ताकि मुझे किसी चीज की जरूरत न पड़ जाए। मेरी माँ और मैं एक दूसरे बहुत प्यार करते हैं। मैं उनकी सबसे प्यारी बेटी हूँ वो मेरी सबसे प्यारी माँ।