Hindi, asked by seemakumarib65, 11 months ago

मेरी अभिलाषा पर 100 शब्द का अनुच्छेद लिखें​

Answers

Answered by potaganiharshapa9p16
6

Answer:

कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता के माध्यम से राष्ट्र पर प्राण निछावर करने की अभिलाषा प्रकट की है । जिस प्रकार समुद्र में अनेक लहरें उठती और विलीन होती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के मन में तरह-तरह की इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं ।

संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो जिस की कोई अभिलाषा न हो । कोई यश चाहता है, कोई धन । कोई नेता बनने की इच्छा रखता है तो कोई लेखक बनने की । कोई सिनेमा कलाकार बनना चाहता है । कोई डाक्टर, इंजीनियर, व्यापारी बनकर अपार धन और यश को अर्जित करना चाहता है । कोई सैनिक बनकर महान् योद्धा बनना चाहता है ।

मेरी अभिलाषा है कि मैं एक सफल अध्यापक बनूं । मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक है । मैं परीक्षा के दिनों में अपने छोटे भाई-बहिनों को पढ़ाता रहा हूँ और अपने साथियों की कठिनाईयां दूर करने में उनको सहयोग देता हूँ । अध्यापक बनने का मेरा संकल्प दृढ़ है । इस का मुख्य कारण यह है कि अध्यापक राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व लिए हुए है ।

अपने परिश्रम और लग्न से अध्यापक प्रतिवर्ष सैकड़ों बालकों का जीवन निर्माण करता है । उनके जीवन को जीने योग्य बनाता है । वस्तुत: यह पुण्य का कार्य है । अध्यापक के पास पर्याप्त समय होता है । ग्रीष्मावकाश, शरदावकाश और क्रिसमस के अवसर पर उसे पर्याप्त छुट्टियाँ मिलती हैं । इनमें वह समाज सेवा कर सकता है ।

अध्यापक बनने के लिए मुझे कठिन परिश्रम करना पड़ेगा । बी॰ एल॰ एम॰ ए॰ करने के साथ-साथ मुझे शिक्षणकला में भी उपाधि ग्रहण करनी होगी । इसके पश्चात् चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा । मैंने कठोर परिश्रम करने का संकल्प कर लिया है ।

अध्यापक का कार्य एक दीपक के समान है, जो स्वयं प्रज्वलित होकर दूसरों को प्रकाश देता है । केवल उपाधि प्राप्त करना ही इसके लिए पर्याप्त नहीं होता । अध्यापक का जीवन तपस्यापूर्ण होता है । उसे नैतिक और चारित्रिक दृष्टि से सुदृढ़ होना चाहिए । जो आदर्शपूर्ण है, वही छात्रों के सामने सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है ।

विद्यार्थियों को विषय पड़ाने के अतिरिक्त उन्हें नैतिक दृष्टि से सबल बनाना नितांत अनिवार्य है । उन में अनुशासनबद्धता लाना उस का दायित्त्व है । उनके जीवन का सर्वांगीण विकास करना उस का लक्ष्य है । प्रत्येक विद्यार्थी की योग्यता को प्रस्कुटित कर उसे विकसित करने में ही उसकी सफलता है । मुझे विश्वास है कि एक दिन में अवश्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होऊंगा और मेरी अभिलाषा पूर्ण होगी ।

Thank u and plz follow me

Answered by anjalipandey40
4

Answer:

मानव-जीवन का परम लक्ष्य है दूसरों को आनन्द प्रदान करना, विश्व का कल्याण करना तथा अपने हृदय सागर के अनमोल से अनमोल रत्न को दूसरों के हित के लिए लुटा देना। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया है कि मैं बड़ा होकर एक आदर्श अध्यापक बनूँ तथा समाज व देश का हित करूँ।

शिक्षक होना सचमुच बहुत बड़ी बात हुआ करती है। वह अपनी सुसाधित सशिक्षा के प्रकाश से अज्ञान के अन्धेरे को दूर कर आदमी को ज्ञान का प्रकाश प्रदान किया करता है। अध्यापक (शिक्षक) का पद वह गौरवपूर्ण पद है जिसको प्राप्त करना बड़ा कठिन है। इसको पाने के लिए मुझे कठिन परिश्रम करना होगा। इसके लिए मुझे सर्वप्रथम एक आदर्श विद्यार्थी बनना होगा। बड़े लगन तथा परिश्रम के साथ विद्याध्ययन करना होगा। मुझे किसी विषय में पारंगत होना होगा, उसके बिना मैं अपने कार्य के साथ न्याय नहीं कर सकता। मुझे एक आदर्श अध्यापक बनने के लिए तपस्वी के समान साधक, सैनिक के समान अनुशासन-प्रिय एवं पृथ्वी के समान धैर्यवान व सहनशील बनना होगा। ऐसा बनना ही मेरे जीवन की अभिलाषा भी है और लक्ष्य भी। इसके लिए मैं निरन्तर प्रयत्नशील हूँ।

Similar questions