Hindi, asked by dhruvisha13, 4 months ago

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर अनुच्छेद लेखन

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Answered by 831ishikashukla
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Explanation:

दोस्तों मैं राहुल मुझे बालपन से ही नई नई जगहों पर घूमने का शौक हैं. अब तक के मेरे जीवन में मैंने भारत के लगभग समस्त राज्यों के बड़े दर्शनीय स्थलों की यात्रा की हैं. जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से आसाम तक हर विख्यात शहर की मैंने यात्रा की हैं.

मेरी यात्राओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यात्रा उड़ीसा के राजधानी शहर भुवनेश्वर की थी, जिन्हें मैं कभी भुला नहीं सकता हूँ. मेरी इस अविस्मरणीय यात्रा का वृन्तात आपकों बता रहा हु.

राजस्थान के अजमेर शहर से रेल के द्वारा हमारे दोस्तों का कारवाँ भुवनेश्वर के लिए रवाना हुआ. हम अगली सुबह दस बजे भुवनेश्वर शहर के रेलवे प्लेटफार्म थे. हमारे मित्र ने पूर्व ही स्टेशन के पास एक होटल में कमरें की बुकिंग करवा ली थी.

होटल पहुचने के बाद हमारें मित्र एक दिन के आराम और दूसरे दिन भुवनेश्वर की यात्रा की योजना बना रहे थे  मेरी व्याकुलता के कारण उन्होंने भी मेरी बात मान ली और अल्पकालीन विश्राम के बाद हम शहर के भ्रमण पर निकल पड़े.

भुवनेश्वर की यात्रा के बारे में जो सुना जो सोचा कही उससे अधिक हमें देखने को मिला. भारत के खूबसूरत उड़ीसा राज्य का यह राजधानी शहर, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का होने के कारण भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहता हैं.

अत्यधिक संख्या में मन्दिरों के कारण भुवनेश्वर को मन्दिरों की सिटी भी कहते हैं, यहाँ पुराने समय के 500 से अधिक प्रसिद्ध मन्दिर हैं. इस कारण इसे पूर्व का काशी उपनाम से भी जाना जाता हैं.

यह वहीँ शहर हैं जहाँ महान सम्राट अशोक ने कलिंग के युद्ध के पश्चात धम्म की दीक्षा को पाया, तथा यहाँ एक विशाल बौद्ध स्तूप बनाया गया, इस कारण यह बौद्ध धर्म से जुड़ा ऐतिहासिक तीर्थ स्थल भी हैं. मध्यकाल में यहाँ मन्दिरों की संख्या तकरी बन एक हजार के आस-पास थी, जो अब मात्र 500 रह गयी हैं.  

हमारी होटल के पास में ही एक राजा रानी का भव्य प्राचीन मन्दिर हैं. जिनमें शिव पार्वती जी विराजमान हैं. इस मन्दिर को देखने के लिए हम निकल पड़े. 11 वीं शताब्दी में बना यह न्दिर सुंदर भित्ति चित्रों एवं स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने के रूप में दर्शकों को रिझाता हैं.

राजा रानी मन्दिर से एक किमी की दूसरी पर मन्दिर समूह स्थित हैं, जहाँ बड़ी संख्या में मन्दिर बने हुए हैं. भुवनेश्वर के प्रसिद्ध मुक्तेश्वर और परमेश्वर मन्दिर यहाँ के दो बड़े मन्दिर हैं. सुंदर दीवारों की नक्काशी वाले इन मन्दिरों के निर्माण के सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि ये सातवीं सदी के हैं|

मुक्तेश्वर के मन्दिर की भित्ति दीवारों पर पंचतन्त्र की सुंदर आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं. सुबह से निकले दिन ढल चुका था नीढल शरीर के साथ हम अपने होटल के कमरे तक आ गये. अगले दिन हमारा जत्था लिंगराज जी के प्रसिद्ध मन्दिरों के भ्रमण के लिए चल पड़ा.

185 फिट लम्बा यह न्दिर भारत की पूरा शिल्प कला का बेजोड़ उदहारण हैं. 11 वी सदी में निर्मित इस मन्दिर के पास सैकड़ों की संख्या में हिन्दू देवी देवताओं के मन्दिर हैं इस कारण इसे लिंगराज मन्दिर कहा जाता हैं. हमारा अगला गन्तव्य स्थल शहर के मध्य में बना भुवनेश्वर संग्रहालय था.

पुराने जमाने की मूर्तियाँ, हस्तलिखित ताड़ पत्र एव पांडुलिपियाँ हमें इतिहास के उस दौर में ले गई. वैसे भी अब तक की हमारी यात्रा इतिहास के उन प्राचीन धरोहरों तक ही चल रही थी.

भुवनेश्वर का एक स्थान है धौली, कहते है आप भुवनेश्वर आए और धौली की यात्रा नहीं की तो आपने क्या देखा. प्राचीन धार्मक महत्व का यह स्थल बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाता हैं. यहाँ एक अशोक का स्तम्भ भी खुदा हुआ हैं जिस पर बौद्ध दर्शन एवं उनके जीवन को उकेरा गया हैं.

शहर से तकरीबन 5 किमी दूर स्थित उदयगिरी एव खंडगिरी हमारा अगला गन्तव्य स्थल था, जो पर्वतों को काटकर गुफाओं और चित्रों का रूप लिए थे. हालांकि समय की परत से चित्रकारी तो खत्म हो गयी मगर मूर्तियाँ का मूल स्वरूप आज भी विद्यमान हैं.

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