Hindi, asked by SwayamKudekar, 4 months ago

मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध

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Answered by Anonymous
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मनुष्य आदिकाल से ही घुमंतू प्राणी रहा है। यह घुमंतूपन उसके स्वभाव का अंग बन चुका है। आदिकाल में मनुष्य अपने भोजन और आश्रय की तलाश में भटकता था तो बाद में अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। इनके अलावा यात्रा का एक और उद्देश्य है-मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन। कुछ लोग समय-समय पर इस तरह की यात्राएँ करना अपने व्यवहार में शामिल कर चुके हैं। ऐसी एक यात्रा करने का अवसर मुझे अपने परिवार के साथ मिला था। दिल्ली से वैष्णों देवी तक की गई इस यात्रा की यादें अविस्मरणीय बन गई हैं।

वैष्णों देवी की इस यात्रा के लिए मन में बड़ा उत्साह था। यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि इस बार दशहरे की छुट्टियों में हमें वैष्णों देवी की यात्रा करना है। इसके लिए दो महीने पहले ही आरक्षण करवा लिया गया था। आरक्षण करवाते समय यह ध्यान रखा गया था कि हमारी यात्रा दिल्ली से सवेरे शुरू हो ताकि रास्ते के दृश्यों का आनंद उठाया जा सके। रास्ते में खाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ घर पर ही तैयार किए गए। चूँकि हमें सवेरे-सवेरे निकलना था, इसलिए कुछ गर्म कपड़ों के अलावा अन्य कपड़े एक-दो पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ टिकट, पहचान पत्र आदि दो-तीन सूटकेसों में यथास्थान रख लिए गए। शाम का खाना जल्दी खाकर हम अलार्म लगाकर सो गए ताकि जल्दी उठ सकें और रेलवे स्टेशन पहुँच सकें।

दिल्ली से जम्मू और वैष्णों देवी की इस यात्रा में एक नहीं अनेक बातें अविस्मरणीय बन गई। हम सभी लगभग चार बजे नई दिल्ली से जम्मू जाने वाली ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म संख्या 5 पर पहुँच गए। मैं सोचता था कि इतनी जल्दी प्लेटफॉर्म पर इक्का-दुक्का लोग ही होंगे पर मेरी यह धारणा गलत साबित हुई। प्लेटफार्म पर सैकड़ों लोग थे। हॉकर और वेंडर खाने-पीने की वस्तुएँ समोसे, छोले, पूरियाँ और सब्जी बनाने में व्यस्त थे। अखबार वाले अखबार बेच रहे थे। कुली ट्रेन आने का इंतज़ार कर रहे थे और कुछ लोग पुराने गत्ते बिछाए चद्दर ओढ़कर नींद का आनंद ले रहे थे।ट्रेन में हमें नाश्ता और काफी मिल गई। दस बजे के आसपास अब खेतों में चरती गाएँ और अन्य जानवर नज़र आने लगे। उन्हें चराने वाले लड़के हमें देखकर हँसते, तालियाँ बजाते और हाथ हिलाते। सब कुछ मस्तिष्क की मेमोरी कार्ड में अंकित होता जा रहा था। लगभग एक बजे ट्रेन में ही हमें खाना दिया गया। खाना स्वादिष्ट था। हमने पेट भर खाया और जब नींद आने लगी तब सो गए। चक्की बैंक पहुँचने पर ही हमारी आँखें शोर सुनकर खुली कि बगल वाली सीट से कोई सूटकेस चुराने की कोशिश कर रहा था पर पकड़ा गया। कुछ और आगे बढ़ने पर पर्वतीय सौंदर्य देखकर आँखें तृप्त हो रही थीं। जम्मू पहुँचकर हम ट्रेन से उतरे और बस से कटरा गया। सीले रास्ते पर चलने का रोमांच हमें कभी नहीं भूलेगा। कटरा में रातभर आराम करने के बाद हम सवेरे तैयार होकर पैदल वैष्णों देवी के लिए चल पड़े और दो बजे वैष्णों देवी पहुंच गए।

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