Hindi, asked by NidhishK, 5 months ago

मीराबाई के काव्य में व्यक्त प्रेम भावना का स्वरूप स्पष्ट कीजिए​

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Answered by pk973pragati
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Answer:

मीरा के काव्य में सांसारिक बंधनो का त्याग और ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव दृष्टिगत होता है। उनकी दृष्टि में सुख, वैभव, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा आदि सभी मिथ्या है। यदि कोई सत्य है तो वह है- ''गिरधर गोपाल''। ... जब वे उसकी पूजा करने लगे, मीराबाई भी उस समय उनके पास जा बैठी।

Answered by franktheruler
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मीराबाई के काव्य में व्यक्त प्रेम भावना का स्वरूप निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है

मीराबाई की गणना भारत के प्रधान भक्तों में की जाती है। कृष्ण की भक्ति साहित्य का भक्तिकाल में एक विशिष्ट स्थान है। मीरा कृष्ण भक्त रचनाकार कवि थी‌।वह सांसरिक बंधनों से निराश होकर श्री कृष्ण की शरण ली और प्रेम तथा भक्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाया।उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रति एक गहरी टीस दिखाई देती है। जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है‌।यह बचपन से ही श्री कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थी। प्रया: मंदिरों में जाकर उपस्थित भक्तों और संतों के बीच श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति के सामने आनंदमगन होकर नाचती और गाती थी। मीरा एक का व्यक्तित्व एक तरह से पूरी व्यवस्था को चुनौती देने वाला रहा।समाज की जड़ता को तोड़कर स्वच्छन्दता की राह दिखाने वाली मीरा ने तत्कालीन सामन्ती समाज व्यवस्था के बंधनों को निडरता से तोड़कर अपने प्रिय के प्रति प्रेम को व्यक्त किया था। “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोय, तो एक के स्वीकार में पूरी व्यवस्था के निषेध का क्रांतिकारी दर्शन घटित दिखाई देता है।” मीराबाई का काव्य उनके हृदय से निकल सहज प्रमोंच्छवास का सारा रूप है।

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