History, asked by priyankakarnawal4185, 5 months ago

मीराबाई के निष्कर्ष पर एक टिप्पणी करें​

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Answered by RoyaleRushi2020
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मीरां का ज्ञात और प्रचारित जीवन गढ़ा हुआ है. गढ़ने का यह काम शताब्दियों तक निरंतर कई लोगों ने कई तरह से किया है और यह आज भी जारी है. मीरां के अपने जीवनकाल में ही यह काम शुरू हो गया था. उसके साहस और स्वेच्छाचार के इर्द-गिर्द लोक ने कई कहानियां गढ़ डाली थीं. बाद में धार्मिक आख्यानकारों ने अपने ढंग से इन कहानियों को नया रूप देकर लिपिबद्ध कर दिया. इन आरंभिक कहानियों में यथार्थ और सच्चाई के संकेत भी थे, लेकिन समय बीतने के साथ धीरे-धीरे इनकी चमक धुंधली पड़ती गई. मीरां के जीवन में प्रेम, रोमांस और रहस्य के तत्त्वों ने उपनिवेशकालीन यूरोपीय इतिहासकारों को भी आकृष्ट किया. उन्होंने उसके सम्बन्ध में प्रचारित प्रेम, रोमांस और रहस्य के तत्त्वों को कहानी का रूप देकर मनचाहा विस्तार दिया. ऐसा करने में उनके साम्राज्यवादी स्वार्थ भी थे.

आजादी के बाद मीरां के संबंध में कई नई जानकारियां सामने आईं, लेकिन कुछ उसके विवाह आदि से संबंधित कुछ नई तथ्यात्मक जानकारियां जोड़ने के अलावा उसकी पारंपरिक छवि में कोई रद्दोबदल नहीं हुआ. साहित्यिक इतिहासकारों और आलोचकों और बाद में नए प्रचार माध्यमों ने मीरां के स्त्री जीवन की कथा को पूरी तरह प्रेम, रोमांस, भक्ति और रहस्य के आख्यान में बदल दिया. उसके साहस और स्वेच्छाचार को वामपंथी और नए स्त्री विमर्शकार ले उड़े. उन्होंने इनकी मनचाही व्याख्याएं कर डालीं. मीरां पर देशी-विदेशी विद्वानों ने कई शोध कार्य किए, लेकिन सभी ने कसौटियां और मानक अपने रखे. उसके संबंध में ज्ञात बहुत कम था इसलिए लोगों के पास अपने तयशुदा मानकों के अनुरूप उसका नया रूप गढ़ने की गुंजाइश और आजादी बहुत थी. लोगों ने इसका जमकर लाभ उठाया और अपनी-अपनी अलग और कई नयी मीरांएं गढ़ डालीं. कहीं यह मीरां भक्त-संत थी, तो कहीं असाधारण विद्रोही स्त्री और कहीं रहस्य और रोमांस में डूबी प्रेम दीवानी. मीरां जीवन विरत संत-भक्त और जोगन नहीं थी, वह प्रेम दीवानी और पगली नहीं थी और वह वंचित-पीड़ित, उपेक्षित और असहाय स्त्री भी नहीं थी. वह एक आत्मसचेत, स्वावलंबी और स्वतंत्र व्यक्तितत्व वाली सामंत स्त्री थी. उसकी भक्ति, साहस और स्वेच्छाचार असामान्य नहीं थे. और वह जिस समाज में पली-बढ़ी उसमें इनके लिए पर्याप्त गुंजाइश और आजादी भी थी और कुछ हद तक इनकी स्वीकार्यता और सम्मान भी था.

Answered by aarushisinghania123
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Explanation:

निष्कर्ष

मुझे इस परियोजना को पूरा करने के लिए अपार खुशी और संतुष्टि मिली। मुझे पता चला कि मीराबाई एक महान संत और श्रीकृष्ण की भक्त थीं। अपने ही परिवार से आलोचना और शत्रुता का सामना करने के बावजूद, वह जीवित रहीं। एक जीवन और कई अनुकरणीय संत भक्ति भजनों की रचना की।

मीरां जीवन विरत संत-भक्त और जोगन नहीं थी, वह प्रेम दीवानी और पगली नहीं थी और वह वंचित-पीड़ित, उपेक्षित और असहाय स्त्री भी नहीं थी। वह एक आत्मसचेत, स्वावलंबी और स्वतंत्र व्यक्तितत्व वाली सामंत स्त्री थी। उसकी भक्ति, साहस और स्वेच्छाचार असामान्य नहीं थे।

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