मीराबाई ने जाति व्यवस्था के प्रति मानव का किस प्रकार विरोध किया उल्लेख कीजिए
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O मीराबाई ने जाति व्यवस्था के प्रतिमानों का किस प्रकार विरोध किया? उल्लेख कीजिए।
► मीराबाई ने जाति व्यवस्था के प्रतिमानों का अपने स्तर पर पूरा विरोध किया। वह अपने भजनों के माध्यम से ही समानता का भाव प्रकट करती थीं। राजपूत घराने के ताल्लुक रखने के बावजूद मीरा बाई ने जी ने जिन्हें अपना गुरु बनाया, वह संत रविदास यानि रैदास निचली जाति से संबंध रखते थे। इस तरह उन्होंने जाति व्यवस्था को नहीं माना और तथाकथित निचली जाति के व्यक्ति को अपना गुरु बनाया। वह अपने भजनों के प्रचार प्रसार में लोगों के संपर्क में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करती थी और हर तरह के लोगों से मिलती थीं। राजपूत कुल की कन्या होने के बावजूद उनका हर जाति के लोगों के साथ मिलना-जुलना उस उनके कुल और समाज में बहुत से लोगों को अच्छा नही लगता और इस कारण उन पर अनेक तरह की रोक लगाने की कोशिशें की गयीं, लेकिन मीराबाई अडिग रहीं। इस तरह उन्होंने जाति व्यवस्था के प्रतिमानों के विरुद्ध अपना विरोध स्थापित किया।
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Answer:
मीराबाई संत थी और संत जांति-पांति में नहीं मानते है | उन्हें केवल ईश्वर प्राप्ति के साधनों में जुटे लोगों से लगाव होता है फिर चाहे वे किसी भी जांति - पांति के हो | ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में लगे अध्यात्म जगत के पथिक मात्र साधु संत होते हैं | इसीलिय वे चूँकि राजघराने की कुलवधू थी परन्तु उन्होंने अपना गुरु रैदासजी को बनाया जो निकृष्ट (चमड़े का काम करनेवाली जांति ) जांति के माने जाते थे |
उनके इष्ट श्रीकृष्ण थे जो उनके अनुसार सबके हैं और सर्वसमर्थ भी है | वे भक्तवत्सल और पतित पावन भी है | वे श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थी | स्वयं भी कहा करती " साधु संग बैठ -बैठ लोक-लाज खोई , मीरा री लगन लगी हो न हो सो होइ |" वे भक्त और संत थी अतएव सांसारिक दृष्टिकोण से कई गुना ऊपर मानस एवं चिंतन रखती थी |