मेरे बाल-बच्चे। उनके न घर थे,नद्वार। मिल की दीवारों की आड़, धुएँ के बादलों की घनी छाया और
टाट-फूस-टिन से घिरी मेरी दुनिया जिसमें मैं ही सपरिवार न था, मेरे से अनेक अभागे थे। और वहाँ का पापमय
घिनौना जीवन, शर्मनाक नरक के कीड़ा का। उधर ऊँची दुनिया में संसदों में, पाप के विरूद्ध कानून बनते रहे
और कानून बनाने वालों की इधर की दुनिया में उनके कानूनों को चरितार्थ करते हम कृतकृत्य होते रहे। चार
ओर अँधेरा था, घरौंदों के पीछे, उन मकान कहलाने वाले घरौंदों के जहाँ दिन-रात की मजदूरी से थका मादा
जीवन बिना लहराए टकराता और टकरा-टकराकर टूट जाता था और ये पस उसी तेजी से गला-पचा जीवन
उगलते थे जिस तेजी से दीवारों के पीछे कारखाने में तैयार माल।
ब
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