India Languages, asked by pradeepsenkumarvar, 18 days ago

'मेरी भावना' कविता के भावार्थ में कवि इस जीवन में कौनसा कार्य करना चाहता है? (सम्पूर्ण कविता)

Answers

Answered by parigpt1910
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Explanation:

मेरी भावना

जिसने राग ढोये कामादिक जीते, सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया | बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, बह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो ।

रहे सदा सत्मंग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का नित्य रहे। उन हो जैसी चर्य्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे । नहीं सताऊ किसी जीव को झूठ कभी नहि कहा करू । परधन बनिता पर न लुभाऊ संतोषामृत पिया करूं।

अहंकार का भाव न रमवू नहीं किसी पर क्रोध करू । देख दूसरों को बढ़ती को कभी न ईर्ष्या भाव धरू । रहे भावना ऐसी मेरी सरल सत्य व्यवहार करू ॥ बने जहाँ तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं ।।

मंत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे । दोम-दुःखी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्रोत बहे ॥ दुर्जन, क्रूर कुमागंरतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे । साम्य भाव रफ्यू मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे ।।

गुण जनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे । बने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे || होऊ नहीं कृतघ्न कभी मैं द्रोह न मेरे उर आवे। गुण-ग्रहण का भाव रहे मित दृष्टि न दोषों पर जावे ॥

कोई बुरा कहो या अच्छा लक्ष्मी आवे या जाये। लाखों वर्षा तक जोऊ या मृत्यु आज ही आ जावे ॥ अथवा कोई कैसा भी भय या लालच देने आवे। तो भो न्याय मार्ग से मेरा कभी न पद डिगने पावे ॥

फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे। अप्रिय कटुक-कठोर शब्द नहि कोई मुख्य से कहा करे ।। बम कर सब युग-बोर हृदय से जग हिताय रत रहा करें। बस्तु-स्वरूप विचार बुशी से सब दुःख-संकट सहा करें ।

-युगलकिशोर मुख्तार

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