मुर्गी के चूजे में भ्रूण कलाओ के विकास का वर्णन कीजिए
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इन अण्डों को मुर्गी द्वारा लगभग 21 दिनों तक निरंतर सेका जाता है, और इन्हें वह अपनी चोंच से नियमित रूप से घुमाती रहती है, यदि इन अण्डों में कोई अण्डा प्रगति नहीं करता तो उन्हें वह समूह से बाहर निकाल देती है। अण्डे के भीतर चूजा पीतक से पोषण प्राप्त करता है, यह पोषण चूजे को 24-seventy two घण्टे तक जीवित रख सकता है। 21 दिनों की ऊष्मायन अवधि के बाद चूजा खोल तोड़कर दुनिया में प्रवेश करता है, जो प्रारंभ में गिला होता है। अण्डे से तुरंत निकलने के बाद ये खूबसूरत रंग-बिरंगे रोंएदार चूजे चलने लगते हैं। मुर्गे द्वारा निषेचित अण्डे ही चूजे में परिवर्तित हो सकते हैं। माता पिता की भांति दांत के अभाव में ये भोजन के छोटे छोटे टुकड़े करने के लिए गिजर्ड या पेषणी का उपयोग करते हैं। इन छोटे चूजों को ऊष्मा की आवश्यकता होती है जो इन्हें अपनी माता के पंखों के भीतर से मिलती है।
Explanation:
20 सप्ताह की आयु में मुर्गी अण्डा देना प्रारंभ कर देती है तथा एक मुर्गी 20-27 घण्टे के भीतर 1 निषेचित अण्डा देती है। अण्डे का विकास मुर्गी के अंदर अंडे के पीतक से प्रारंभ होता है, पीतक का निर्माण अण्डोत्सर्ग नामक प्रक्रिया से मुर्गी के अण्डाशय में होता है। इस स्तर पर पीतक को अंडक कहा जाता है। यह पीतक मुर्गी की डिंबवाहिनी के नीचे आती है, जिन्हें मुर्गों द्वारा निषेचित किया भी जा सकता है और नहीं भी। यह पीतक, पीतक झिल्ली से ढक जाते हैं, जहां पर अण्डे का सफेद भाग विकसित होता है तथा धीरे-धीरे बाह्य खोल तैयार होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग 20 घण्टे का समय लगता है। एक पूर्ण विकसित अण्डे को सुविधाजनक स्थान पर दे देती है।
दूसरे सप्ताह के भीतर चूजों के पंख निकलना प्रारंभ हो जाते हैं। तीन से चार सप्ताह के भीतर इनके पंख और आकार तीव्रता से बढ़ने लगते है। पंख विकसित होने के बाद इन्हें विशेष ऊष्मा देने की आवश्यकता नहीं होती है, अब वे स्वयं को वातानुकुल ढाल सकते हैं। 6 महीने की अवधि में यह चूजे पूर्ण वयस्क हो जाते हैं। वयस्क मुर्गा और मुर्गी में शारीरिक भिन्नता देखने को मिलती है। मुर्गियां प्रतिवर्ष अपने पुराने और क्षतिग्रस्त पंखों को गिरा देती हैं तथा उनमें नये पंख विकसित हो जाते हैं। वयस्क मुर्गी पुनः अण्डे देना प्रारंभ कर देती है और इनका जीवन चक्र ऐसे ही चलता रहता है।
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