Hindi, asked by tushar43391, 11 months ago

मीराँ की भक्ति में सगुण भक्ति के तत्त्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।"" यह कथन स्पष्ट कीजिए।

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Answered by RvChaudharY50
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Answer:

मीरों के अधिकांश पद श्रीकृष्ण को आलम्बन बनाकर रचे गये हैं। ऐसे पदों में स्थान-स्थान पर साँवरिया, स्याम, गिरधर गोपाल, हरि एवं नटवर नागर आदि सम्बोधनों का प्रयोग हुआ है। इनसे स्पष्ट हो जाता है कि मीराँ ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण की भक्ति में ही स्वयं को धन्य माना है। सगुण-साकार भक्ति के सूत्र उनकी रचनाओं में सर्वत्र उपलब्ध हो जाते हैं। उन्होंने अपने आराध्य की रूप-छवि, रूप-सौन्दर्य, आकार-प्रकार एवं विविध लीलाओं का साकार वर्णन कर उन्हें अपने हृदय में अविनाशी प्रियतम के रूप में बसाया है। उन्होंने अपने आराध्य के सारे कार्यकलापों को साकार रूप में दर्शाया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मीराँ की माधुरी भक्ति में उसकी सगुण भक्ति की ही प्रधानता है।

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