मीरा के पद का भावार्थ कक्षा 11। पुस्तक् आरोह् पाठ 12
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Explanation:
मीरा के पद कविता का सार- मीरा के पद कविता सारांश
प्रस्तुत पहले पद में कवयित्री मीरां श्री कृष्ण के प्रति अपनी भावनाओं को पहचानें। श्री कृष्ण को अपने पति के राज्य में रखा गया है और वो हमेशा अपनी सेवा में रहते हैं।
वो लोक - लाज सब छोड़ कर मंदिरों में श्री कृष्ण के भजन गाती रहती हैं , साधु संतों की संगति में बैठी रहती हैं। कृष्ण की तरह समझ से दूर रहें।
दही में दही मिलाने और छैछ करने में सक्षम होने के बाद, मीरा ने भी यह पहचान की है कि यह माया से अलग है।
भविष्य में मीरा ने धांधली में खतरनाक होने की बात कही। इन स्टाइल में वे किस प्रकार के होते हैं वे घुंघरू...
लोग उन्हें पागल कहते हैं , कहते हैं कि कुल का नाम खराब कर दिया । मीरा को यह भी समझ में नहीं आया। उनका
मीरा के पद कविता- मीरा के पद कविता
पद 1
मेरे जैसे गिरधर गोपाल , इन्सलेटर्स न
जा के सिर मोर कुक्ट , मेरो पति सोई
छाँड़ी द डाय कुल की कानी , करिहैं ?
संतन ढिग बैठि- बैठि , लोक-खोयी लाज
अंसुवन जल सींचि - सींचि , प्रेम - बोयी बेलि
अब लिए आरएसएस चिह्न बेलि फैलि गयी , आणंद - होयी फल
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो , डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी , जगत देख रहे हैं
दासी मीरां लाल गिरधर ! वरो अब मोही
पद 2
पग घुँघरू बांधि मीरां नाची ,
मैं तो मेरे नारायण सूं , आपहि हो गई साची
लोग कहै , मीरां भइ बावरी ; तत कहै कुल-नासीन्या
विस का प्याला शुक्या , पीवती मीरां हिंदसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर , सहज अवनासी
मीरा के पद की कविता का निरूपण- मीरा के पद कविता रेखा द्वारा पंक्ति व्याख्या
मेरे तो गिरधर गोपाल , इन्सलेटर न कोई
जा के सिर मोर कुक्ट , मेरो पति सोई
छाँड़ी द कुल की कानी , करि कोई है ?
संतन ढिग बैठक- जल सभा , लोक-लाज अंसुवन
सींचि – सींचि , प्रेम – बेली बोयी त बेली
अब , आणंद – फली
मीरा के पद व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ' मीरा के पद ' से उद्धृत हैं। इनलाइन में कवयित्री ने अपने अद्वितीय श्री कृष्ण के प्रतिघात को चिह्नित किया है और बाहरी व्यक्ति के संपर्क में आने वाले व्यक्ति के प्रति विषेषण किया गया है।
इन अपडेट में मीरा निम्न प्रकार की हैं और ये इस प्रकार के हैं जैसे कि इस श्रेणी में आने वाले समय में इसे संशोधित किया जा सकता है। सिर पर मोर पंख का कुट है ही मेरे पति हैं.
और अब पूरी तरह से मैडा को भी , I I. मैं तो लोक-लाज हूं ।
वे आगे कहती हैं कि कृष्ण प्रेम रूपी जिस बेल को मैंने आंसुओं से सींचा है वो अब बहुत फैल चुकी है और अब उस बेल से मुझे बहुत आनंद की प्राप्ति हो रही है अर्थात , वो अब कृष्ण भक्ति में पूरी तरह लीन हो चुकी हैं और उसमें अब डबल आनंद की गतिविधियां कर रहे हैं।
दूध की मठियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मिथि घृत काढ़ि वृहद , डारि दिछोयी
भगति राजी हुयी , जगत् खोजी
रोम दासी मीरां लाल गिरधर ! वरो अब मोही
मीरा के पद निरूपण: प्रस्तुत पंक्ति में हमरी में स्थिति'मीरा के पद'से उद्धत। इन में कवित्री ने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन किया है।
इन में मीराबाईं प्रेम से मथा. छाछ को हटा दिया है।
इस आक्रमणकारी कृष्ण प्रेम का चिह्न है। और डाइमरी से मीराबाई का ताकथायिक जीवन से है। इस स्ट्रेट का अर्थ है कि अपने जीवन के वैलेट को नष्ट कर दिया है।
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वो कहती हैं कि हे कृष्ण मैं तो तुम्हारी दासी हूँ , और अब तुम ही हो जो मुझे इस संसार से पार लगाओगे ।
पग घुँघरू बांधि मीरां नाची ,
मैं तो मेरे नारायण सूं , आपहि हो गई साची
लोग कहै , मीरां भइ बावरी ; तत कहै कुल-नासीन्या
विस का प्याला शुक्या , पीवती मीरां हिंदसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर , सहज अवनासी
मीरा के पद निरूपण: प्रस्तुत पंक्ति में हमरी में स्थिति'मीरा के पद'से उद्धत। इन में मीरा बाई जी अपने श्री कृष्ण के प्रेम में अमर होने की बात कह रहे हैं।
मीरां कीटाणु वे कृष्ण की तरह सूक्ष्म रम वाले होते हैं, जैसे कि घुंघरू... मीरा ने स्वयं को अपने मित्र के रूप में व्यवहार किया है।
लोग उन्हें देख कर बावली कहते हैं , कहते हैं कि मीरा ने कुल का नाश कर दिया है क्योंकि वे राजमहल की सारी सुख सुविधाओं को छोड़ कर फकीरों की तरह घूमती रहती हैं ।
वे किस समय या किस प्रकार के बच्चे के साथ रहते थे। क़िस्म के दैवीय मतिभ्रष्ट हो सकता है।
इसलिए उं 20 y y y y y y यो 20. उस विष के प्याले को मीरा बाई ने पी लिया और फिर वो हंसने लगी कि ये कैसे मूर्ख लोग हैं , इनको इतना भी नहीं पता कि कृष्ण की भक्ति में इतनी शक्ति है कि इस विष का मुझपर कोई भी असर नहीं होगा ।
कभी भी वे फोन नहीं थे जैसे कि वे अविनाशी श्री कृष्ण के दर्शन थे । वे कहती हैं कि मेरे प्रभु श्री कृष्ण तो इतने सीधे हैं कि भक्तों को सहज ही दर्शन दे देते हैं।