मेरी कलपना मेरा मासक पर अनुच्छेद लेखन
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कल्पना नाम से एक मासिक पत्र का प्रकाशन सन 1949 से 1951 तक होता रहा। इस पत्र का प्रकाशन हैदराबाद से होता था।
प्रारंभ से ही इस पत्र का स्वरूप साहित्यिक रहा।
आर्येंद्र शर्मा कल्पना मासिक पत्र के प्रधान संपादक रहे। इसके संपादक मंडल में बद्री विशाल पित्ती, जगदीश मित्तल, गौतम राव व मुनींद्र आदि थे।
कल्पना मासिक पत्र की भाषा और हिज्जे संबंधी अपने नियम हैं, जिनका वह पालन करती है। सामग्री चयन से लेकर मुद्रण तक में उसकी सुरुचि दृष्टव्य है।
साहित्यिक दृष्टि से कल्पना हिंदी पत्रों में अपना अग्रिम स्थान रखती है। वर्तमान हिंदी साहित्य को अग्रसर करने में इस पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान है।
नए तथा पुराने सभी प्रकार के लेखकों का सहयोग इस पत्रिका को प्राप्त हो रहा है, वैसे भी इस पत्रिका ने कभी अपने आप को किसी एक लेखक या मंडल में बांधना नहीं चाहा। इसकी संपादकीय नीति उदार है, पर सामग्री के चयन में स्तर का बराबर ध्यान रखा जाता है।[1]
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संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिक्षा प्रणाली पर COVID-19 के प्रभाव के कारण शैक्षिक वित्तपोषण का अंतर एक-तिहाई तक बढ़ सकता है।
स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94% छात्र आबादी प्रभावित हुई है और निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले देशों में यह संख्या 99% है।
इसके अलावा COVID-19 महामारी ने शिक्षा प्रण हो गए हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह आँकड़ा केवल 20% है।
प्रभाव:
इस महामारी का सबसे अधिक प्रभाव लड़कियों और महिलाओं पर देखने को मिल सकता है, स्कूल बंद होने से वे बाल विवाह और लिंग आधारित हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएंगी।
साथ ही बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
वर्ष 2020 की शुरू में यह अनुमान लगाया गया था कि विश्व के अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शिक्षा बजट और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सतत् विकास लक्ष्य तक पहुँचाने के लिये आवश्यक राशि के बीच लगभग 148 बिलियन डॉलर का अंतर है, COVID-19 महामारी के कारण इस वित्तपोषण अंतराल में दो-तिहाई तक वृद्धि हो सकती है।
बेहतर शिक्षा की आवश्यकता
शिक्षा युवा पीढ़ी को जीवन कौशल प्रदान करती है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। साथ ही सुशासन हेतु आम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षा परिपक्व लोकतंत्र की प्राप्ति एवं ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के लक्ष्य की प्राप्ति में भी मददगार साबित हो सकती है।
महिलाओं को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को दूर करने की कुंजी साबित हो सकती है।
महिलाओं को शिक्षित करने से उन्हें उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक किया जा सकता है।
कौशल आधारित शिक्षा आम लोगों को कौशलयुक्त करके भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास में उनकी भूमिका सुनिश्चित कर सकती है। साथ ही शिक्षा लोगों को रोज़गार सृजित करने में भी सहायता कर सकती है।
वैश्विक स्तर पर संसाधन काफी सीमित हैं और इसलिये इनका धारणीय प्रयोग काफी आवश्यक है, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये युवा पीढ़ी को शिक्षा के माध्यम से सीमित संसाधनों का धारणीय प्रयोग सिखाया जा सकता है।
मानव विकास सूचकांक (HDI) और पिसा रैंकिंग जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में में भारत की स्थिति को सुधारने के लिये देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
भारत में शिक्षा की वर्तमान समस्याएँ
पर्याप्त अनुसंधान की कमी: भारतीय शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त अनुसंधान की कमी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है। साथ ही गुणवत्तायुक्त शिक्षकों की संख्या भी काफी सीमित है।
लैंगिक विभाजन: भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े दर्शाते हैं कि राजस्थान (52.7%) और बिहार (53.3%) में महिला शिक्षा की स्थिति काफी खराब है।
जनगणना आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश की महिला साक्षरता दर (65.5%) देश की कुल साक्षरता दर (74.04%) से भी कम है।
कौशल आधारित शिक्षा अभाव: भारत में कौशल आधारित शिक्षा की कमी स्पष्ट तौर पर महसूस की जा सकती है। हमारे यहाँ एक ऐसी शिक्षा प्रणाली मौजूद है, जहाँ केवल किताबी ज्ञान प्रदान किया जाता है, और बच्चों को कौशलयुक्त होने के लिये प्रेरणा नहीं दी जाती है।
खराब अवसंरचना और सुविधाएँ: खराब बुनियादी ढाँचा भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के लिये एक बड़ी चुनl उप-ज़िला (Sub-District) क्षेत्रों की 90% या इससे अधिक जनसंख्या वाले अनुसूचित जनजातीय समुदाय से संबंधित क्षेत्रों में प्रयोगात्मक आधार पर एकलव्य मॉडल डे-बोर्डिंग विद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव है। इन विद्यालयों का उद्देश्य, बिना आवासीय सुविधा के ST छात्रों को विद्यालय शिक्षा का लाभ देना है।
किरण (KIRAN) का पूर्ण रूप ‘शिक्षण द्वारा अनुसंधान विकास में ज्ञा
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2014 में महिला केंद्रित सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किरण योजना (KIRAN Scheme) में समाहित कर दिया था।
अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक सशक्तीकरण और रोज़गार उन्मुख कौशल विकास को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (Multi-sectoral Development Programme-MsDP) की शुरुआत जिसका बाद में नाम बदलकर प्रधान मंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) कर दिया गया।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये स्कूल, कॉलेज, पॉलिटेक्निक, लड़कियों के लिये छात्रावास, कौशल विकास केंद्र जैसी सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं को विकसित करना है।
अल्पसंख्यक समुदायों का समावेशी विकास से संबंधित पहलें:
सीखो और कमाओ
उस्ताद
गरीब नवाज़ कौशल विकास योजना
नई मंज़िल
नई रोशनी
बेगम हज़रत महल गर्ल्स स्कॉलरशिप
आगे की राह
रिपोर्ट में सुझाव देते हुए कहा गया है कि विश्व की सरकारों को अपने शिक्षा बजट को संरक्षित करने एवं उसे बढ़ाने की ज़रूरत है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के केंद्र में रखा जाए।
वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली खराब अवसंरचना और सुविधाओं से जूझ रही है, ऐसे में आवश्यक है कि सरकार देश के शिक्षा क्षेत्र की अवसंरचना में सुधार करने का यथासंभव प्रयास करे, जिससे विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके।
सरकार को अनुसंधान जैसे क्षेत्रों पर GDP का अधिक अंश व्यय करना चाहिये।
पाठ्यक्रम को इस प्रकार से डिज़ाइन किया जाना चाहिये जिससे वह उच्च शिक्षा को कौशल/ व्यावसायिक प्रशिक्षण और इंडस्ट्री इंटरफेस के साथ एकीकृत कर सके।
नीति निर्तामाओं को शिक्षा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय मानकों को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिये।
निजी निवेश के स
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