'मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं' -लेखक ऐसा क्यों कहता
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वस्तुत: लेखक(शिवपूजन सहाय ) स्वयं को कहानी लिखने की प्रतिभा से विहीन मानते है | उन्हें कहानी का प्लाट तो मिल गया है पर वे खुद को साधारण कलाविद् भी नहीं मानते है | इसी के चलते उन्होंने अपने गाँव के मुंशीजी की पुत्री को कल्पित नाम दिया था "भगजोगनी " | लेखक ने जिस दिन उसे पहले पहल देखा था वह करीब ११- १२ वर्ष की थी | उसका सौन्दर्य और सुघराई के साथ उसकी गरीबी देखकर लेखक(शिवपूजन सहाय) का कलेजा कांप गया था |
लेखक(शिवपूजन सहाय ) के अनुसार यदि कोई भावुक - ह्रदय कवि या लेखक उसे (भगजोगनी को )देख लेता तो उसकी लेखनी से अनायास करुणा की धारा फूट निकलती किन्तु मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं था जो उसकी गरीबी के भयावह चित्र को मेरे ह्रदय पट से उतारकर कमल रुपी इस कोमल दल पर रख सके और चूँकि घटना सत्य पर आधारित है केवल प्रभावी बनाने के लिए मुझसे भड़कीली भाषा का प्रयोग भी नहीं बनता | ऐसा वे मानते थे |