मेरा माँझी मुझसे कहता रहता था
बिना बात तुम नहीं किसी से टकराना ।
पर जो बार-बार बाधा बन के आए,
उनके सिर को वहीं कुचल कर बढ़ जाना ।।
जानबूझकर जो मेरे पथ में आती हैं,
भवसागर की चलती-फिरती चट्टानें ।
मैं इनसे जितना ही बचकर चलता हूँ,
उतनी ही मिलती हैं, ये ग्रीवा ताने ।
रख अपनी पतवार, कुदाली को लेकर
तब मै इनका उन्नत भाल झुकाता हूँ।
राह बनाकर नाव चढ़ाए जाता
हूँ,
जीवन की नैया का चतुर खिवैया मैं
भवसागर में नाव बढ़ाए जाता हूँ ।
question-
1 - पतवार और कुदाली किसका प्रतिनिधित्व करते हैं ?
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Answer:
मूझे लगता है कि यहीं उत्तर हैं = रख अपनी पतवार, कुदाली को लेकर
तब मै इनका उन्नत भाल झुकाता हूँ।
राह बनाकर नाव चढ़ाए जाता
हूँ,
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