मेरा मुझे मुझसे कहता रहता था।
बिना बात तुम नहीं किसी से टकराना ।
पर जो बार-बार बाधा बन के आए,
उनके सिर को वहीं कुचल कर बढ़ जाना
जानबूझकर जो मेरे पथ में आती हैं,
भवसागर की चलती-फिरती चट्टान ।
मैं इनसे जितना ही बचकर चलता हूँ,
उतनी ही मिलती हैं, ये ग्रीवा ताने ।
रख अपनी पतवार, कुदाली को लेकर
तब मै इनका उन्नत भाल झुकाता हूँ।
राह बनाकर नाव चढ़ाए जाता
हूँ,
जीवन की नैया का चतुर खिवैया मैं
भवसागर मे नाव बढ़ाए जाता हूँ।
(६) उन्नत भाल का क्या आशय है?
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Unnat ka arth matha ya uncha matha or bhaal ka mtlb sir jukhana
Yani ki wah unko apna matha yani sir jhukakata h
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