मेरो मन अनत कहां सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै॥hindi aarth
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iss me surdas g ne parmatma orr atma k milan ki anokhi vyakhya ki hh isme vo kehte h ki yadi unki atma ka milan parmatma se nhi hota h to unke hriya ko shanti nhi milegi
yahan kavi panchii k madhyam se batana chahte h kii jo vyakti prabhu ko idhar udhar dundhta h vo murkh h .....
HOPE THAT IT HELPED YOU
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मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै |
भावार्थ :-
इन पंक्तियों में सूरदास जी कहते हैं कि , यहां भक्त की भगवान् के प्रति अनन्यता की ऊंची अवस्था दिखाई गई है। जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है। उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्माही है , अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति मिलने की नहीं। प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है।
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