‘मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
३. जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै।' पंक्ति का आशय स्पष्ट kijiye
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सूरदासजी कहते है कि मेरा मन श्रीकृष्ण के सिवाय और कहीं सुख नही पाता। जैसे जहाज का पंछी जहाज से उड़कर पुनः जहाज पर ही आता है , उसी तरह मेरा मन अन्य देवताओं के यहां से भटककर फिर श्रीकृष्ण के चरणों में लौट आता है। कमलनयन श्रीकृष्ण की महिमा छोड़कर वह किसी अन्य देवता का ध्यान कैसे कर सकता है ?
khairunnisha:
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