मेरे प्रिय अध्यापक पर निबंध
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मेरे प्रिय अध्यापक मृदुभाषी हैं । उनकी मधुर बोली से विद्यार्थी ही नहीं, उनके सहयोगी भी प्रभावित होते हैं । विद्यालय में उनका बहुत सम्मान किया जाता है । विद्यालय की ओर से जब कभी शैक्षिक भ्रमण का कार्यक्रम आयोजित होता है वे हमेशा साथ जाते हैं । उनकी उपस्थिति मात्र से ही विद्यार्थी सहज और अनुशासित हो जाते हैं । वे विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने में विश्वास नहीं रखते । वे हमें कहते हैं-गलतियाँ करो नई-नई गलतियाँ करो उसी से सीखोगे लेकिन एक ही गलती को बार-बार मत दोहराओ । जो एक ही गलती को बार-बार दोहराते हैं वे मूढ़ होते हैं ।
विद्यार्थियों के ऊपर इस तरह के प्रेरणादायी वाक्यों का जादू का सा असर होता है ।
ऐसे आदर्श अध्यापक का आशीर्वाद पाकर किसे गर्व नहीं होगा । वे विद्यार्थियों के साथ किसी प्रकार का भेद- भाव नहीं करते । सबको समान दृष्टि से देखते हैं । निर्धन तथा मेधावी छात्रों को वे विद्यालय की ओर से उचित सहूलियतें दिलवाते हैं । वे विद्यार्थियों को स्वास्थ्यप्रद आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं । कक्षा और विद्यालय कर सफाई पर भी उनकी दृष्टि रहती है । वे हमें सकारात्मक सोच रखने तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ।
समाज में गुरु का स्थान-प्राचीन काल में हमारे समाज में गुरु का महत्व सर्वोपरि रहा हैं. गुरु, आचार्य, शिक्षक या अध्यापक ये सभी समानार्थी शब्द हैं. अध्यापक एक ऐसा कलाकार होता हैं, जो अपने शिष्यों के व्यक्तित्व का निर्माण बड़ी सहजता और कुशलता से करता हैं. हमारे मन के अज्ञान को दूर कर उसमें ज्ञान का आलोक फैलाने वाला गुरु ही होता हैं.
परमात्मा का साक्षात्कार भी गुरु की कृपा से ही हो सकता हैं. इसी विशेषता के कारण कबीरदास आदि संत कवियों ने गुरु की कृपा से ही हो सकता हैं. इसी विशेषता के कारण कबीरदास अदि संत कवियों ने गुरु की सर्वप्रथम वन्दना की और गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताया. वस्तुतः मानव जीवन का निर्माता हमारे समाज और राष्ट्र का निर्माता गुरु या अध्यापक ही होता हैं.
मेरे प्रिय अध्यापक का अनुकरणीय जीवन– मेरे प्रिय अध्यापक की दिनचर्या अनुकरणीय हैं. वे प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर नियमित रूप से भ्रमण के लिए जाते हैं. फिर स्नानादि कर पूजा करते हैं और भोजन करके विद्यालय आ जाते हैं. विद्यालय की प्रार्थना सभा का संचालन वे ही करते हैं. प्रार्थना के बाद पांच मिनट के लिए वे प्रतिदिन नयें नयें विषयों को लेकर शिक्षापूर्ण व्याख्यान देते हैं.
तत्पश्चात वे अपने कालांशों में नियमित रूप से अध्यापन कराते हैं. पाठ का सार बतलाना, उससे संबंधित गृहकार्य देना, पहले दिए गये गृहकार्य की जांच करना, मौखिक प्रश्नोतर करना तथा अन्य संबंधित बातों का उल्लेख करना उनका पाठन शैली की विशेषताएँ हैं. सायंकाल घर में आकर स्वाध्याय करते हैं. रविवार के दिन वे अभिभावकों से सम्पर्क करने की कोशिश करते हैं. तथा एक आध घंटा समाज सेवा में लगाते हैं. इस तरह अध्यापकजी की दिनचर्या नियमित और निर्धारित हैं