मेरा प्रिय नेता महात्मा गांधी
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भारत महापुरषों का देश है ! बाल गंगाधर तिलक, महादेव गोविंद रानडे, गोपाळकृषण गोखले, महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू आदि अनेक नेत्ताओं ने हमारे इतिहास की शोभा बढाई है ! इन सभी के प्रति मैं पूरा आदरभाव रखता हूँ , परन्तु मेरे सबसे आधिक प्रिय नेता तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी है !
गाँधीजी में नेतृत्व की अदभुत क्षमता थी ! सीधी-सधी सरल भाषा में दिए गए उनके भाषण देशवासियों पर जादूका सा असर करते थे ! उनकी एक पुकार पर आजादी के दीवानो की टोलियाँ मातृभूमि पर बलिदान देने के लिए निकल पड़ती थी ! पच्चीस वर्षो से भी आधिक समय तक उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध कई आहिंसक आन्दोलन चलाये ! अंत में अँग्रेज शासको की लाठियों, बंदुखों, तोपों और बमों पर आहिंसा ने विजय पायी ! सदियों से गुलाम रहा भारत आजाद हुआ ! इसलिए गांधीजी ‘युगपुरुष’ कहलाये !
गांघीजी आज के मत बटोरने वाले नेताओं के तरह दिखावा पसंद नहीं करते थे ! उनके मन, वचन, और कर्म में एकरूपता थी ! गांधीजी में देशसेवा की सच्ची लगन थी ! वे लोकसेवा क बल पर नेता बने थे !
भारत को स्वतंत्र करना गांधीजी का सबसे प्रमुख लक्ष्य था, किन्तु उनके प्रयत्न इस लक्ष्य तक ही सिमित नहीं रहे ! वे इस देश में रामराज्य देखना चाहते थे , इसलिए उन्होंने समाज सुधार का कार्य भी किया ! उन्होंने गरीब भारत को तकली और चरखे द्वारा रोजी-रोटी दी ! शराब बंदी, निरक्षरता-निवारण, स्त्री-शिक्षा, ग्रामोद्वधार आदि के लिए उन्होंने आथक प्रयत्न किये ! देश को एक सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने राष्ट्रभाषा का प्रचार किया ! हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए वे आजीवन प्रयत्न करते रहे ! उन्होंने आछुतो को ‘हरिजन ‘ नाम देकर उनका सम्मान किया !
गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे ! उनके जीवन में सादगी थी ! दुर्बल शरीर और घुटनों तक ऊँची धोती पहनने वाले गांधीजी भारत की आम जनता के प्रतिक थे ! उनके ह्रदय से दया, धर्म और प्रेम की त्रिवेणी लगातार बहती थी ! इस अर्थ में वे सचमुच ‘महात्मा’ थे ! जिस तरह एक पिता अपने परिवार को सुखी देखना है, उसी तरह गांधीजी सरे देश को सुखी एवं समर्द देखना चाहते थे ! इसलिए लोगो ने उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर उनका आदर किया ! सचमुच, वे सरे देश के प्यारे ‘बापू’ थे !
गाँधीजी ने अपना सब कुछ नयोंछावर कर भारत का नवनिर्माण किया ! वे भारत के ही नहीं, सरे विश्व के नेता थे ! इसे महँ देशभक्त को यदि मैं अपना प्रिय नेता मानु तो इसमें आश्चर्य ही क्या है !