मेरी प्रिय पुस्तक गीतांजलि :निबंध800शब्द
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मेरी प्रिय पुस्तक पर निबन्ध |
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस है । लोकनायक तुलसीदास की इस अमर कृति में वे सभी तत्त्वसार विद्यमान हैं, जिन्होंने केवल मुझे ही नहीं अपितु भारतीय जनजीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है । इस महत्वपूर्ण कृति ने भारतीय आदर्श, नीति और संस्कृति की रक्षा की है ।
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस का मुख्य उद्देश्य पुरुषत्तम श्रीराम के लोकरक्षक चरित्र का विशद् चित्रांकन करना है । श्रीराम ‘ रामचरितमानस ’ के प्रमुख कालचक्र पूरीसमान महानायक हैं । वे परब्रमहा होते हुए भी एक गृहस्थ के रूप में आते हैं ।
इनमें श्रीराम जहाँ धीर, वीर और गम्भीर व्यक्तित्व के दिखाई देते हैं, तो वहाँ वे आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भ्राता, एक आदर्श पति, मित्र और राजा के रूप में भी दिखाई पड़ते हैं । वास्तव में इसके सभी पात्रों का व्यक्तित्व अपने आप में एक अनूठा आदर्श हैं, जो अनुकरणीय है चरित्रों के माध्यम से लोकनायक तुलसीदास ने समाज को ऐसे मानवीय मूल्य अर्पित किए हैं, जो राष्ट्र और काल दोनों ही परिधि से परे हैं ।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा 1910 ई॰ में प्रकाशित मूल गीतांजलि वस्तुतः बाङ्ला भाषा में पद्यात्मक कृति थी। इसमें कोई गद्यात्मक रचना नहीं थी, बल्कि सभी गीत अथवा गान थे। इसमें 125 अप्रकाशित तथा 32 पूर्व के संकलनों में प्रकाशित गीत संकलित थे। पूर्व प्रकाशित गीतों में नैवेद्य से 15, खेया से 11, शिशु से 3 तथा चैताली, कल्पना और स्मरण से एक-एक गीत लिये गये थे। इस प्रकार कुल 157 गीतों का यह संकलन गीतांजलि के नाम से सितंबर 1910 ई॰ (1317 बंगाब्द) में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हुआ था।[1] इसके विज्ञापन (प्राक्कथन) में इसमें संकलित गीतों के संबंध में स्वयं रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा था :
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा 1910 ई॰ में प्रकाशित मूल गीतांजलि वस्तुतः बाङ्ला भाषा में पद्यात्मक कृति थी। इसमें कोई गद्यात्मक रचना नहीं थी, बल्कि सभी गीत अथवा गान थे। इसमें 125 अप्रकाशित तथा 32 पूर्व के संकलनों में प्रकाशित गीत संकलित थे। पूर्व प्रकाशित गीतों में नैवेद्य से 15, खेया से 11, शिशु से 3 तथा चैताली, कल्पना और स्मरण से एक-एक गीत लिये गये थे। इस प्रकार कुल 157 गीतों का यह संकलन गीतांजलि के नाम से सितंबर 1910 ई॰ (1317 बंगाब्द) में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हुआ था।[1] इसके विज्ञापन (प्राक्कथन) में इसमें संकलित गीतों के संबंध में स्वयं रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा था :"इस ग्रंथ में संकलित आरंभिक कुछेक गीत (गान) दो-एक अन्य कृतियों में प्रकाशित हो चुके हैं। लेकिन थोड़े समय के अंतराल के बाद जो गान रचित हुए, उनमें परस्पर भाव-ऐक्य को ध्यान में रखकर, उन सबको इस पुस्तक में एक साथ प्रकाशित किया जा रहा है।"[2]
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित तथा 1910 ई॰ में प्रकाशित मूल गीतांजलि वस्तुतः बाङ्ला भाषा में पद्यात्मक कृति थी। इसमें कोई गद्यात्मक रचना नहीं थी, बल्कि सभी गीत अथवा गान थे। इसमें 125 अप्रकाशित तथा 32 पूर्व के संकलनों में प्रकाशित गीत संकलित थे। पूर्व प्रकाशित गीतों में नैवेद्य से 15, खेया से 11, शिशु से 3 तथा चैताली, कल्पना और स्मरण से एक-एक गीत लिये गये थे। इस प्रकार कुल 157 गीतों का यह संकलन गीतांजलि के नाम से सितंबर 1910 ई॰ (1317 बंगाब्द) में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा प्रकाशित हुआ था।[1] इसके विज्ञापन (प्राक्कथन) में इसमें संकलित गीतों के संबंध में स्वयं रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा था :"इस ग्रंथ में संकलित आरंभिक कुछेक गीत (गान) दो-एक अन्य कृतियों में प्रकाशित हो चुके हैं। लेकिन थोड़े समय के अंतराल के बाद जो गान रचित हुए, उनमें परस्पर भाव-ऐक्य को ध्यान में रखकर, उन सबको इस पुस्तक में एक साथ प्रकाशित किया जा रहा है।"[2]यह बात अनिवार्य रूप से ध्यान रखने योग्य है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार मूल बाङ्ला गीतों के संकलन इस 'गीतांजलि' के लिए नहीं दिया गया था बल्कि इस गीतांजलि के साथ अन्य संग्रहों से भी चयनित गानों के एक अन्य संग्रह के अंग्रेजी गद्यानुवाद के लिए दिया गया था। यह गद्यानुवाद स्वयं कवि ने किया था और इस संग्रह का नाम 'गीतांजलि : सॉन्ग ऑफ़रिंग्स ' रखा था।[1]