मेरा प्रिय रचनाकार निबंध
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मेरे प्रिय कवि हैं संत कबीर दास | क्यों की वे कविता में साहित्यिक रस और मनोरंजन के आलावा सामाजिक स्तर पर अपना एक व्यापक दृष्टिकोण का उल्लेख करते हैं | वे वास्तव में एक सफल कवि हैं जो कविता में अपनी सोच को आसमान की फलक तक ले जाने का हौसला रखते हैं | यह बिडम्बना है की कबीर न ही पढ़े-लिखे थे न ही कोई पेशेवर रचनाकार , फिरभी वे संत थे और एक समाज सुधारक | ईकीस्वीं सदी में जब आज का समाज भी जातिभेद के दलदल में फंसा हुआ है , इस के विरोध में सायद ही कोई आवाज़ उठाता है , किन्तु उस समय के रुढ़िवादी एवं कट्टरवादी समाज में भी कबीर ने जातिवाद का विरोध पुरे आत्मविश्वास और निर्भय के साथ किया था | आज के वैज्न्यानिक युग में भी लोग अंधविश्वास , रूढ़ियाँ और अंतर्विरोध को उपजाते हैं | किन्तु कबीर का विरोध और समन्वय की भावना को ज्यादा महत्वा देते हैं | कबीर की भाषा में मस्तमौलापन का भाव झलकता है | उनके भाव कभी भाषा के गुलाम नहीं थे | कबीर अनुभूति और प्रतिभा से ओताप्रेत तेजस्वी व्यक्तित्व के धनि तथा अपनी समग्रता ओर व्यापकता में मेरे सबसे प्रिय कवी हैं |
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Answer:
मेरे प्रिय लेखक रचनाकार, मुंशी प्रेमचंद जी है ।
Explanation:
मेरा प्रिय रचनाकार
“लेखक ना कभी बनते हैं,
ना कभी बनाए जाते हैं
जन्मजात ये गुण होते हैं इनमे जो
उभर के स्वम् निखर जाते है”
हिंदी साहित्य में ऐसे कई लेखक हैं जो कीमती रत्न के समान है जिनका लोहा आज सारा विश्व स्वीकार करता है ।
मेरे प्रिय रचनाकार मुंशी प्रेमचंद जी है , इनका जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 में हुआ था उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था ।प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था उन्हें नवाब राय के नाम से भी जाना जाता था इनका बचपन अभावों में बिता 10वीं परीक्षा पास कर के इन्होंने 12वीं की परीक्षा में असफल हो जाने पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी विद्यार्थी जीवन में इनका विवाह हो गया था पत्नी के अनुकूल ना होने के कारण उन्होंने दूसरा विवाह किया था जिसका नाम शिवरानी देवी था मैट्रिक तक होने के बाद एक विद्यालय में अध्यापक हो गए थे उन्होंने स्वधाई रूप में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर हो गए थे। असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर इन्होंने नौकरी छोड़ दी थी इसके बाद उन्होंने साहित्य जीवन में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम मर्यादा पत्रिका के संपादक रहे फिर इन्होंने प्रेस खोली लंबी बीमारी के बाद सन 1936 ई. में इनका निधन हो गया।
प्रेमचंद जी की भाषा दो प्रकार की थी-
(1) जिसमें यह संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग करते थे ।
(2) जिसमें उर्दू ,संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग करते थे ।
प्रेमचंद जी अपने साहित्य की रचना जनसाधारण के लिए करते थे वह विषय एवं भावों के अनुकूल शैली को परिवर्तित कर लेते थे इनकी शैलियां है-विवेचनात्मक,मनोवैज्ञानिक, हास्य, भावात्मक है ।