Hindi, asked by bobbysingh3482, 1 year ago

मेरे सपनों का भारत essay in 100 words

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Answered by Anonymous
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   मेरे सपनों का भारत

हमारा देश भारत है और हम इसकी संतान हैं। दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।

भारत की प्राकृतिक बनावट व संपदा अद्भुत है। उत्तर में बर्फ से ढकी हिमालय की ऊंची पर्वत चोटियां है। दक्षिण में हिंद महासागर है। ऐसे लगता है जैसे वह इस देश के चरणों को धो रहा है। हिमालय से निकलने वाली नदियां गंगा, यमुना ,ब्रह्मपुत्र ,रावी, झेलम आदि सदैव जलराशि से पूर्ण रहती है और देश की धरती को श्यामल बना देती है। गंगा, यमुना और सतलज के उपजाऊ मैदानों जैसे मैदान दुनियाभर में दूसरे नहीं है। विभिन्न ऋतु में इसकी प्राकृतिक छटा को निखारती रहती है। यह हमारा सौभाग्य है कि प्रकृति की इस क्रीडास्थली में हमारा जन्म हुआ है।

इसका क्षेत्रफल विशाल है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में इसका दूसरा स्थान है। संसार का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है। हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा होने का गौरव प्राप्त है।

हमारे देश का अतीत बहुत गौरव पूर्ण रहा है। इस देश में बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी ऋषि मुनि और महात्मा हुए हैं। हमारे देश में महावीर, गौतम बुद्ध, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कृष्ण जैसे महापुरुष हुए हैं। हमारा देश भारत बड़े बड़े कवियों तुलसी ,सूरदास, कबीर, रहीम ,बिहारी, जयशंकर प्रसाद की जन्म भूमि रहा है।

हमारे देश की यह विशेषता रही है कि हम हमेशा विश्व कल्याण की भावना से अभिभूत रहे हैं। सारे संसार में विश्व बंधुत्व की धारा बहाने का गौरव हमारे देश को ही प्राप्त है।

हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता रहा है। यहां अनेक विदेशी जातियां और इसी देश की संस्कृति से हिल मिल गई। हमारे देश में विभिन्न जाति संप्रदाय के लोग मिलकर रहते हैं। यह विभिन्न धर्मों का देश है। संसार के इतिहास में कई सभ्यताएं पनपीं और अस्त हो गई लेकिन भारत की सभ्यता अभी तक मुखर है।

ऐसे गौरवपूर्ण देश का वासी होने के नाते हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम इसकी उन्नति के लिए हमेशा सजग रहें। आपसी कलह और फूट को जड़ से उखाड़ कर फेंक दें। भाषा और संस्कृति के झगड़े इस देश की विरासत नहीं है। हम एकता का बिगुल बजाकर भारत को संसार का शिरोमणि बनाएं।

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Answered by vikram991
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अपने देश के प्रति सभी समझदार नागरिकों का अपना एक अलग दृष्टिकोण होता है । वह अपने देश के विषय में चर्चाएँ करता है और चिंतन करता है ।

यहाँ किस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए, समाज का स्वरूप कैसा हो, लोगों को किस हद् तक अपनी परंपराओं एवं प्राचीन विश्वासों का सम्मान करना चाहिए, आधुनिक समस्याओं का देश किस प्रकार निदान करे आदि सैकड़ों बातें हमें उद्‌वेलित करती रहती हैं ।

अपना देश जिन्हें प्यारा होता है और जितना प्यारा होता है, उसी अनुपात में लोगों के निजी हित गौण होते जाते हैं और राष्ट्रहित सर्वोपरि होता जाता है । जब राष्ट्रहित निजी हित से ऊपर हो जाता है तब राष्ट्र के निर्माण, उसका भविष्य सँवारने के स्वप्नों का सृजन भी आरंभ हो जाता है । मैंने भी अपने राष्ट्र को लेकर कुछ सपने बुने हैं, कुछ निजी विचारों का बीजारोपण किया है ।

हालाँकि राष्ट्र निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन इसमें असंभव जैसा कुछ भी नहीं है । अधिकांश यूरोपीय देशों की संपन्नता तथा जापान जैसे एक छोटे से देश का विश्व आर्थिक क्षितिज पर शक्तिशाली होकर उभरना यह सिद्‌ध करता है कि यदि देश के सभी लोग किसी लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर कार्य करें तो उस देश का वर्तमान और भविष्य दोनों सुधर सकता है ।

समस्याग्रस्त तो सभी हैं पर उन समस्याओं को देखने तथा उन्हें सुलझाने का नजरिया सबों का भिन्न-भिन्न है । भारत की सबसे बड़ी समस्या लोगों की कर्महीनता है । हम दूसरों को उपदेश देने में प्रवीण हैं, पर स्वयं उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं ।

भारत की आत्मा अभी भी जीवंत है लेकिन लोग अधमरे से हैं । मेरे सपनों का भारत उद्‌यमशील होना चाहिए, अकर्मण्य लोगों को यहाँ कम सम्मान मिलना चाहिए । मगर हम उन लोगों के भाग्य को सराहते हैं जो बिना हाथ-पाँव डुलाए, मुफ्त की रोटी तोड़ रहे होते हैं ।

आजादी के आंदोलन के दौरान गाँधीजी ने लोगों के समक्ष यह बात बारंबार दुहराई थी कि श्रम का सम्मान किए बिना भारत सही मायनों में आजाद नहीं हो सकता । फिर भी ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाली हमारी आदत गई नहीं ।

vikram991: marks me brainless
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