मेरे सपने (मेंरे जीवन का लक्ष्य) कविता
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आता है वह दिन सबके जीवन में
एक प्रश्न उठता है मन ही मन में
क्या बनना है तुम को होकर बड़ा
पूछा आईने से मैं जो वहाँ था खड़ा
मैंने भी देखें हैं कुछ अलग से सपने
अनोखे शायद पर बिलकुल मेरे अपने
क्या बनकर सैनिक करूँ देश की रक्षा
या बन अध्यापक बच्चों को दूँ शिक्षा
क्या लिखित जगत में स्थान बनाऊँ
या धर्म कर्म से विपुल पुण्य कमाऊँ
देश को जागृत कराऊँ बनकर विज्ञानी
या प्रशस्त मार्ग में ले जाऊँ मैं बन ज्ञानी
कुछ भी बनूँ लेकिन यही मेरी अभिलाषा
संकट दुख में कभी न हो मन में निराशा
इस धरती माँ का मैं भी तो हूँ एक संतान
मेरा तो लक्ष्य यही बनूँ मैं अच्छा इन्सान...
एक प्रश्न उठता है मन ही मन में
क्या बनना है तुम को होकर बड़ा
पूछा आईने से मैं जो वहाँ था खड़ा
मैंने भी देखें हैं कुछ अलग से सपने
अनोखे शायद पर बिलकुल मेरे अपने
क्या बनकर सैनिक करूँ देश की रक्षा
या बन अध्यापक बच्चों को दूँ शिक्षा
क्या लिखित जगत में स्थान बनाऊँ
या धर्म कर्म से विपुल पुण्य कमाऊँ
देश को जागृत कराऊँ बनकर विज्ञानी
या प्रशस्त मार्ग में ले जाऊँ मैं बन ज्ञानी
कुछ भी बनूँ लेकिन यही मेरी अभिलाषा
संकट दुख में कभी न हो मन में निराशा
इस धरती माँ का मैं भी तो हूँ एक संतान
मेरा तो लक्ष्य यही बनूँ मैं अच्छा इन्सान...
VRAAA:
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