Hindi, asked by divyanshi019, 5 months ago

मंरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बलि फैलि गयी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

प्रश्न
1)भाव-सौदर्य बताइए।
2)शिल्प–सौदर्य स्पष्ट कीजिए।

Answers

Answered by pratyush15899
9

Explanation:

उत्तर-

1) इस पद में मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है। वे कुल की मर्यादा को भी छोड़ देती हैं तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उन्होंने कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं से सींचकर बड़ा किया है और भक्ति रूपी मथानी से सार रूपी घी निकाला है। वे प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं और उससे विरह की पीड़ा सहती हैं।

2) ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।

● भक्ति रस है।

● ‘दूध की मथनियाँ . छोयी’ में अन्योक्ति अलंकार है।

● ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।

● अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– गिरधर गोपाल

– मोर-मुकुट

– कुल की कानि

– कहा करिहै कोई

– लोक-लाज

– बेलि बोयी

Similar questions