Hindi, asked by sagaragraw857, 6 months ago

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जाके सिर मोर-मुकुट मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई
संतन हिंग वैठे-बैठि लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सीचि-सीचि प्रेम वेलि वोयी
प्रथः
(क) भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।​

Answers

Answered by shrikantgaikwad23201
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Explanation:

कभी कहते हैं गिरी को धारण करने वाले गायों का पालन कृष्ण की सिवा मेरा और कोई नहीं है जिनके मस्तक पर मोर का मुकुट शोभित है वही मेरे पति है उनके लिए मेरे कुल की मर्यादा छोड़ दी है चाहे कोई मुझे कुछ भी कहे संतो के साथ में बैठकर मैंने लोक लाज त्याग दी है मैंने अपने प्रेम रूपी बेल को अपने अश्रु रूपी जल कर बड़ा किया है आप तो यह प्रेम बेल फैल गई है और इसमें आनंद रूपी फल लगने लगा है मैंने दूध जमाने के पात्र में जमे दही को मथने में बड़े प्रेम से बोलो या और उसमें कृष्ण को निकाल लिया शिक्षा जगत को छोड़ दिया

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Answered by sushmadhkl
2

Answer:

प्रस्तुत पद कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति की है। इसके लिए उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। अब तो फल प्राप्ति का समय आ गया है!

Explanation:

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं-मेरे तो गिरिधर गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण ही सर्वस्व हैं। ‘अन्य किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिस कृष्ण के सिर पर मोर-मुकुट है, वही मेरा पति है। मैं श्रीकृष्ण को ही अपना पति (रक्षक) मानती हूँ।

इस भक्ति के लिए मैंने अपने माता-पिता, भाई-बंधु आदि सभी को छोड़ दिया है। वे मरे कोई नहीं होते। मैंने तो अपने वंश-परिवार की मर्यादा का भी त्याग कर दिया है, अब मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता अर्थात् मुझे किसी की चिंता नहीं है। मैंने तो लोक-लज्जा -को खोकर संतों के निकट बैठना स्वीकार कर लिया है।

साधु-सन्तों के पास बैठने से यदि लोक-लज्जा जाती है तो भले ही चली जाए, मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। मैंने तो अपनै आँसुओं रूपी जल से प्रभु-प्रेम रूपी बेल को बोया है। अब तो यह प्रेम बेल फलने-फूलने लगी है और इसमें आनंद रूपी फल आ रहा है।

कवयित्री कहती है कि मैंने दूध की मशनियाँ को बड़े प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया और छाछ को छोड़ दिया है अर्थात् सार-तत्व को तो ग्रहण कर लिया और सारहीन अंश को छोड़ दिया है। मैं तो भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ और संसार के रंग-ढंग को देखकर रोती हूँ अर्थात् दुखी होती हूँ।

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