मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।
अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई ।।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई ।।
भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी 'मीरा' लाल गिरिधर तारो अब मोही ।। उपर्युक्त पदयांश की प्रथम चार पंक्तींना का सरल अर्थ 25 से 30 शब्द मे लिखिए
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I don t know kkkkkkkkkkkk
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