मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई। छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै को संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोई। अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई, आणंद फल होई। भगति देखि राजी हुई, जगति देखि रोई दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोही।।
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भावर्थ : ये पंक्तियां कृष्णभक्त् मीराबाई के द्वारा रांची गई हैं।
इन पंक्तियों ने मीराबाई कहती हैं-मेरे तो गिरिधर गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण ही मेरे लिए सब कुछ हैं। 'अन्य किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिस कृष्ण के सिर पर मोर-मुकुट है, वही मेरा पति है। मैं श्रीकृष्ण को ही अपना पति (रक्षक) मानती हूँ।
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