मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोईजाके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोईछाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई ।अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई।अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई ।।दूध की मथनियाँ
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it's Giridhar nagar poem
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