मौर्य शासन काल के सारनाथ में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण
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वाराणसी। सारनाथ का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से एक सौ साल पीछे खिसककर चौथी शताब्दी ईसा पूर्व पहुंच गया है। खंडहर में खुदाई के दौरान निकले अवशेष को कॉर्बन डेटिंग (वन सिग्मा कैलिब्रेशन) के लिए फ्लोरिडा भेजा गया था। आए परिणाम चौंकाने वाले हैं। अवशेषों की डेटिंग 395 से 370 ईशा पूर्व के बीच निर्धारित हुई है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि सारनाथ की प्राचीनता अशोक काल से भी पूर्व की है। वैज्ञानिक सत्यापन का यह अत्याधुनिक तरीका सटीक माना जाता है।
अंग्रेजों शासनकाल के दौरान सारनाथ में खुदाई हुई थी। इस दौरान मिले अवशेषों को आकार-प्रकार और मूर्तियों की शैली के आधार पर उनकी तिथि पुरातत्वविदों ने निर्धारित की थी। बुद्ध के उपदेश स्थली का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 12वीं ईसा तक निर्धारित किया गया था। इससे यह भी साबित हो गया था कि सारनाथ का विकास सम्राट अशोक ने कराया। अभी हाल ही में अशोक स्तंभ व मूलगंध कुटी विहार के उत्तर में खुदाई कराई गई थी। इन स्थानों से अलग-अलग चारकोल के दो सैंपल कार्बन डेटिंग के लिए भेजा गए थे, जिनका परिणाम आ गया है। उप अधीक्षक पुरातत्वविद् अजय श्रीवास्तव ने बताया कि अशोक स्तंभ के समीप वाले ट्रेंच के अवशेष का काल निर्धारण 395 से 370 ईसा पूर्व आया है। इसी प्रकार मूलगंध कुटीविहार के समीप चल रही खुदाई में निकले चारकोल की डेटिंग 345 से 405 ई. आई है। उन्होंने बताया कि काल निर्धारण का यह वैज्ञानिक तरीका विश्वसनीय और काफी हद तक सटीक है। इस बाबत पुरातत्वविद विदुला जायसवाल ने बताया कि हम पहले से ही अनुमान लगा रहे थे कि यह विकास अशोक के पहले के हैं। बौद्ध मतावलंबी मौय काल के पहले से ही सारनाथ पहुंचे होंगे और उन्होंने वहां के विकास में योगदान दिया होगा। इस मौके पर उन्होंने राजघाट की खुदाई से निकले अवशेष के सैंपल को जल्द ही कॉर्बन डेटिंग के लिए भेजने की बात कही।
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