Business Studies, asked by Srijaa5140, 11 months ago

मौर्योत्तर भारत के प्रमुख व्यापारिक मार्गों का वर्णन कीजिए।

Answers

Answered by crystalnavaro
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Answer:

मौर्य साम्राज्य की लड़खड़ाती हुई दीवार ई. पू. 187 में ढह गई और मौर्य साम्राज्य के अंत के साथ ही भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता कुछ समय के लिए खंडित हो गई। अब हिन्दुकुश से लेकर कर्नाटक एवं बंगाल तक एक ही राजवंश का आधिपत्य नहीं रहा। देश के उत्तर पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में अपने अपने राज्य स्थापित कर लिए। दक्षिण में स्थानीय शासक वंश स्वतंत्र हो उठे। कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश का सिंधु घाटी एवं गोदावरी क्षेत्र से सम्बन्ध टूट गया और मगध के वैभव का स्थान साकल, विदिशा, प्रतिष्ठान, आदि कई नगरों ने ले लिया।

Explanation:

सन 80 के लगभग किसी यूनानी नाविक ने "पेरिप्लस आफ़ दि एरिथियन सी" नामक पुस्तक में भारतीय समुद्रों का हाल लिखा था। इस पुस्तक से ईस्वी सन् की पहली शती में भारत की व्यापारिक गतिविधि का पता चलता है। स्ट्राबो के 'भूगोल' एवं प्लिनी कृत 'नेचुरल हिस्ट्री' में उन देशों के विविध पक्षों का वर्णन मिलता है जिनके साथ उस समय भूमध्यसागरीय देशों का व्यापारिक सम्बन्ध था। ये दोनों कृतियाँ ईस्वी सन् की आरम्भिक दो शताब्दियों की हैं। चीन के राजवंशों के प्रारम्भिक इतिहास ग्रंथ भी इस काल के सम्बन्ध में उपयोगी सामग्री प्रदान करने में सहायक हुए हैं।

राजाओं के अभिलेखों में प्रशस्तियाँ और राजाज्ञाएँ प्रमुख हैं। प्रशस्तियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है गौतमी वलश्री का नासिक अभिलेख, जिसमें गौतमीपुत्र शातकर्णी का वर्णन है। रुद्रदामा का गिरनार शिलालेख भी उस समय का प्रसिद्ध अभिलेख है। इस समय का इतिहास लिखने में सिक्के बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। भारतीय सिक्कों पर पहले केवल देवताओं के चित्र ही अंकित रहते थे, उनका नाम या तिथि उत्कीर्ण नहीं की जाती थी। जब से उत्तर पश्चिमी भारत पर बैक्ट्रिया के यूनानी राजाओं का शासन प्रारम्भ हुआ, सिक्कों पर राजाओं के नाम व तिथियाँ उत्कीर्ण की जाने लगीं। शक, पल्लव और कुषाण राजाओं ने भी यूनानी राजाओं के अनुरूप ही सिक्के चलाए। भारतीय शक राजाओं और मालव यौधेय आदि गण राज्यों के इतिहास पर उनके सिक्के पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। वास्तव में सिक्कों के इतिहास की दृष्टि से यह काल अभूतपूर्व है। सिक्कों की मात्रा से ही नहीं अपितु विविध धातुओं तथा विविध इकाइयों में मिलने वाले सिक्कों से यह संकेत मिलता है कि मुद्रा - प्रणाली किस प्रकार जनजीवन का एक

अभिन्न अंग बन गई थी

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