मुरली तऊ गुपाल हि भावति सुन री सखी जदपि नदलालहि नाना भांति नचावति काव्य सौदय्र स्पष्ट करो
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मुरली तऊ गुपालहिं भावति। सुनि री सखी जदपि, नंदलालहिं नाना भांति नचावति।
✎... अर्थात एक सखी दूसरे सखी से कहती है, हे सखी, कृष्ण की मुरली उन्हें अनेक तरह नाच नचाती है और फिर भी श्रीकृष्ण को यह मुरली अति पसंद है। श्री कृष्ण की मुरली उन पर अपना अधिकार जताती है और यदि हम कुछ आपत्ति करें तो हम पर उनके द्वारा क्रोध करवाती है। इस मुरली के खुश होने से श्रीकृष्ण भी प्रसन्न हो जाते हैं। वह पूरी तरह मुरली के वश में हो गए हैं।
काव्य सौंदर्य ➲ सुन री सखी, नंदलालहि नाना भांति नचावति आदि शब्दों में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। भाषा ब्रज है। पद छंदात्मक शैली में हैं। नार नचावति जैसे मुहावरों का प्रयोग हुआ है।
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