मारने वाले से बचाने वला बड़ा क्यों होता हैं ?
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बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है। बचाने वाला जीवन प्रदान करता है। वह जीवन दाता होता है। प्राण लेने वाला आतातायी होता है। वह घृणित कार्य करता है। वह हिंसक होता है। दूसरे के प्राण लेना पाप है। मारने वाला घोर पाप करता है। वह पापी माना जाता है। इसलिए प्राण की रक्षा करने वाला प्राण को हरने वाले से बड़ा होता है।
दुनिया में किसी को भी मारना एक बहुत आसान काम है लेकिन किसी मरते को बचाना एक बहुत बड़ा काम है। हम किसी को भी आसानी से मार सकते हैं या मरता देख सकते हैं लेकिन उसको बचाने के लिए जब हम प्रयास करते हैं तो और यदि उन प्रयासों से उस व्यक्ति की जान बच जाती है तो हमें जो संतुष्टि मिलती है उसका कोई मोल नहीं होता।
भारतीय लोग अपने ग्रंथों को अपना गुरु मानते हैं और इन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी यही लिखा गया है कि बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है और मानव को दूसरों के प्रति सदैव दया भाव रखना चाहिए। बचाने वाले मनुष्य का सब लोग आदर करते हैं और उसे महान समझा जाता है जबकि जो व्यक्ति किसी की हत्या करते हैं या प्राण लेते हैं उन्हें समाज तुच्छ नजरों से देखता है।
सभी धर्मों का सार यही है कि हमें सदैव अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए और जीवो के प्रति दया दिखानी चाहिए । ईश्वर हमारे सब कर्मों से प्रसन्न होते हैं और यदि हम जीवो के प्रति दया भाव रखते हैं तो ईश्वर हम पर अपनी कृपा बरसाते हैं। इसीलिए माना जाता है कि बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है।
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