मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
ANSWER THE FOLLOWING:
( क ) गोपी अपने मन की बात ब्रज के लोगों को क्यों सुना रही है ?
( ख ) गोपी स्वयं को कब नही सँभाल पाती और क्या ?
( ग ) गोपी कानों में में उँगली क्यों डालना चाहती है ?
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sry i an't understand this question
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