Hindi, asked by abirmajumdarmpleps, 10 months ago

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।​

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Answered by shishir303
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मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।

भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।​

भावार्थ ►  रसखान कहते हैं कि श्री कृष्ण गोपियों को इतनी पसंद आते हैं कीिगोपियां कृष्ण को रिझाने के लिए श्रीकृष्ण की तरह के सारे स्वांग करने को तैयार हैं। वह श्रीकृष्ण की तरह मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को भी तैयार हैं। लेकिन इसके साथ ही वह एक शर्त रख देती हैं कि वह मुरलीधर के होठों से लगी मुरलीधर की बांसुरी को अपने होठों से लगाने के लिए तैयार नहीं है। अर्थात गोपियां श्री कृष्ण द्वारा किए जाने वाले सारे कृत्यों का स्वांग करने को तैयार हैं। बस मुरलीधर की बांसुरी से उन्हें कष्ट है, क्योंकि वह श्री कृष्ण की बांसुरी को अपनी सौतन समझती हैं, जिसके कारण श्री कृष्ण बांसुरी में ही मगन रहते हैं और उनकी तरफ ध्यान नहीं देते।

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कवि ‘रसखान’ से संबंधित कुछ अन्य प्रश्न—▼

पुनर्जन्म होने पर कवि रसखान की क्या कामना है ?

https://brainly.in/question/11007431

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काव्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए:- या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

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