Hindi, asked by Tumbsdk, 28 days ago

मास्क की आत्मकथा (No Spams Allowed or I will report you )​

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Answered by itzsecretagent
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ㅤㅤㅤमास्क की आत्मकथा

मैं मास्क नहीं... मैं तो रुई का धागा हूँ। रुई तो कपास हैं। कपास गुजरात और महाराष्ट्र के खेतों में पैदा होती है। बरसात में किसान अपने खेत में कपास के बीज डालता है। कुछ ही दिनों के बाद अंकुर झाँकने लगते हैं। अंकुर पौधा बनता है। किसान की सेवा से पौधे बड़े हो जाते हैं। पौधों में पीले-पीले फूल आ जाते हैं। किसान अपनी धरती माँ को देखता है, कभी आकाश को और फिर अपने पसीने पर नजर डालता है। उसे संतोष होता है।

पीले फूल झड़ने लगते हैं। उनमें कपास को ढोंढी उग जाती है। दशहरे के आस-पास ढोंढ़ी पक जाती है। अपने आप फूटने लगती है। उजली कपास की झाँकी मिल जाती है। किसान कपास को बटोर लेता है। घर में कपास की ढेरी से धीरे-धीरे बीज या बिनौला निकाला जाता है। रुई की राशि इकट्ठी हो जाती है। धुनिया धुनकी से रुई को धुन देता है। किसान देखता है कि बर्फ के समान रुई की ढेरी से उसका ओसारा भर गया। कभी लगता है कि उसके आंगन-ओसारे में उजले-उजले बादल आ गए हैं। उसका मन दीपों का त्योहार मनाने के लिए उतावला हो उठता है।

यात्रा में आगे बढ़ना है। स्त्रियाँ रुई की पूनियाँ बनाती हैं। पूनियाँ से चखें पर सूत काता जाता है। गाँधीजी चखें पर सूत कातते थे। सूत की अंटियाँ बनती हैं। और तब बुनकर अपने करघे पर सूत की अँटियों से सूत को फैलाकर कपड़ा बुनता है। अब करघे के साथ-साथ बड़ी-बड़ी मशीनें हैं। हथकरघा या मशीन पर का बना हुआ मास्क हाट-बाजार में आता है। दुकानों में ये मास्क रखे जाते हैं। यात्रा इतनी लम्बी है।

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Answered by neeraj2345ag
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