'मुस्कुराहट का कोष लुटाने वालों के दोनों हाथों में लड्डू होते हैं' स्पष्ट कीजिए
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कपट, स्वार्थ, गुरुता और हीनता की भावना से ग्रस्त कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट बनावटी होती है जो बातचीत की रोचकता को समाप्त कर देती है। मुस्कुराहट का अक्षय कोष लुटाने वाले गरीब नहीं होते। उनके तो दोनों हाथों में लड्डू होते हैं - जाता कुछ नहीं, मिलता बहुत कुछ है।
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कपट, स्वार्थ, गुरुता और हीनता की भावना से ग्रस्त कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट बनावटी होती है जो बातचीत की रोचकता को समाप्त कर देती है। मुस्कुराहट का अक्षय कोष लुटाने वाले गरीब नहीं होते। उनके तो दोनों हाथों में लड्डू होते हैं - जाता कुछ नहीं, मिलता बहुत कुछ है।
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