मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की रक्षा के लिए कानूनी हसतक्षेप आवशयक ,के पक्ष या विपक्ष मे वाद विवाद हेतु विषय तैयर ????
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मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए क़ानूनी हस्तक्षेप जरुरी
सुप्रभात, आदरणीय गुरुजन, निर्णायकगण और मेरे प्रिय साथियों, आज मैं अजीत सिंह वाद विवाद प्रतियोगिता के विषय 'मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए क़ानूनी हस्तक्षेप जरुरी' के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ। हमारा राष्ट्र एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और हमारा संविधान सभी नागरिकों पर धर्म, जाति और लिंग के निरपेक्ष लागू होता है।
जहाँ धर्म और जाति के दायरे संकुचित होकर लोगों के हित के विरुद्ध सामने आते हैं तो हमारी सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि सम्बंधित लोगों को इस संकीर्णता से निकालकर उनके जीवन का गौरव और मान उन्हें प्रदान करें। विवाह किसी भी लड़की या लड़के के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है और अगर वह एक ताश के पत्तों के घर के सामान सिर्फ तीन शब्द तलाक़, तलाक़, तलाक़ बोलने पर टूट जाता है तो यह न केवल कानून की जिम्मेदारी है, अपितु उन धर्म गुरुओं की भी जिम्मेदारी है कि सदियों से चली आ रही इस कुरीति पर फिरसे विचार करें और ऐसा निर्णय लें जो मानवता के हित में हो।
मेरे विरोधी पक्ष के सदस्य अगर धर्म के नियमों को पत्थर कि लकीर की तरह अडिग मानते हैं तो मैं उनसे एक प्रश्न करना चाहूंगा कि आज जब महिला सशक्तिकरण का डंका पुरे विश्व में बज रहा है, क्या उनकी जिंदगी का हम भावावेश में बोले तीन शब्दों से निर्णय कर देंगे? अगर वे अपने दायरे से बहार नहीं आना चाहते तो कम से कम नारी का सम्मान करें और उन्हें अपने घर मैं सजाने वाली एक वास्तु न समझें जिसे वो जब चाहें निकाल कर बहार कर सकते हैं । अगर वह अपने रवैये नहीं बदलते तो राष्ट्र का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि उनकी औरतों को उनकी मर्यादा और अस्मिता वापिस दिलाएं.
अंत में मैं सिर्फ निर्णायकगणों से इतना ही अनुरोध करूँगा कि वह इस बात पर गौर करें कि जहाँ जहाँ और जब जब एक राष्ट्र के लोग धर्म से ऊपर उठ कर सामान्य हित के लिए नीतियां बनाते हैं वहीँ पर हम मानवता और राष्ट्र का विकास प्राप्त कर सकते हैं. मेरे विवाद क़ो धैर्य से सुनने के लिए श्रोतागणों क़ो धन्यवाद।
सुप्रभात, आदरणीय गुरुजन, निर्णायकगण और मेरे प्रिय साथियों, आज मैं अजीत सिंह वाद विवाद प्रतियोगिता के विषय 'मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए क़ानूनी हस्तक्षेप जरुरी' के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ। हमारा राष्ट्र एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और हमारा संविधान सभी नागरिकों पर धर्म, जाति और लिंग के निरपेक्ष लागू होता है।
जहाँ धर्म और जाति के दायरे संकुचित होकर लोगों के हित के विरुद्ध सामने आते हैं तो हमारी सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि सम्बंधित लोगों को इस संकीर्णता से निकालकर उनके जीवन का गौरव और मान उन्हें प्रदान करें। विवाह किसी भी लड़की या लड़के के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है और अगर वह एक ताश के पत्तों के घर के सामान सिर्फ तीन शब्द तलाक़, तलाक़, तलाक़ बोलने पर टूट जाता है तो यह न केवल कानून की जिम्मेदारी है, अपितु उन धर्म गुरुओं की भी जिम्मेदारी है कि सदियों से चली आ रही इस कुरीति पर फिरसे विचार करें और ऐसा निर्णय लें जो मानवता के हित में हो।
मेरे विरोधी पक्ष के सदस्य अगर धर्म के नियमों को पत्थर कि लकीर की तरह अडिग मानते हैं तो मैं उनसे एक प्रश्न करना चाहूंगा कि आज जब महिला सशक्तिकरण का डंका पुरे विश्व में बज रहा है, क्या उनकी जिंदगी का हम भावावेश में बोले तीन शब्दों से निर्णय कर देंगे? अगर वे अपने दायरे से बहार नहीं आना चाहते तो कम से कम नारी का सम्मान करें और उन्हें अपने घर मैं सजाने वाली एक वास्तु न समझें जिसे वो जब चाहें निकाल कर बहार कर सकते हैं । अगर वह अपने रवैये नहीं बदलते तो राष्ट्र का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि उनकी औरतों को उनकी मर्यादा और अस्मिता वापिस दिलाएं.
अंत में मैं सिर्फ निर्णायकगणों से इतना ही अनुरोध करूँगा कि वह इस बात पर गौर करें कि जहाँ जहाँ और जब जब एक राष्ट्र के लोग धर्म से ऊपर उठ कर सामान्य हित के लिए नीतियां बनाते हैं वहीँ पर हम मानवता और राष्ट्र का विकास प्राप्त कर सकते हैं. मेरे विवाद क़ो धैर्य से सुनने के लिए श्रोतागणों क़ो धन्यवाद।
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