मेसोपोटामिया की मोहरों की बनावट और उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
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मेसोपोटामिया का यूनानी अर्थ है "दो नदियों के बीच"। यह इलाका दजला (टिगरिस) और फ़ुरात (इयुफ़्रेटीस) नदियों के बीच के क्षेत्र में पड़ता है। इसमें आधुनिक इराक़ बाबिल ज़िला, उत्तरपूर्वी सीरिया, दक्षिणपूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। यह कांस्ययुगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यहाँ सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य अलग-अलग समय में स्थापित हुए थे। हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया को 'मेलुहा' कहा गया है।
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मेसोपोटामिया की मोहरों की बनावट और उपयोगिता का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है।
- प्राचीन काल में पत्थर की मोहरें थी ।इन मोहरो पर चिह्न अंकित हुआ करते थे।
- मेसोपोटामिया में पत्थर की बेलानकार मोहरें हुआ करती थी जिनके आर पार छिद्र होते थे।उनपर एक तीली लगाई जाती थी व गीली मट्टी पर घुमाई जाती थी।
- इस प्रकार चित्र बनता जाता था।
- मोहरें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरी जाती थी।
- इन मोहरों पर तरह तरह के लेख लिखे जाती थी , कभी मालिक जेएस नाम, इष्टदेव का नाम आदि।
- कोई कपड़े की गठरी या मिट्टी का की बर्तन लिया जाता था , उन पर चिकनी मिट्टी से लीपा पोती कर उसके मुंह पर मोहर घुमाई जाती थी।
- इस प्रकार इन मोहरों का प्रयोग इन बर्तनों या कपड़े की गठरी में कोई वस्तु सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था।
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