Hindi, asked by negisaurabh, 11 months ago

मैं सिरचन को मनाने गया। देखा, एक फटी हुई शीतलपाटी पर लेट कर
सोच रहा है। मुझे देखते ही बोला - "बबुआजी! अब नहीं कान पकडता
टकर वह कुछ
नहीं। ... मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूगा? कोन पहनेगा? सन
मरी, बेटे-बेटियों को ले गई अपने साथ। बबुआजी, मेरी घर वाली जिन्दा रहती
मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं
करूंगा। ... गांव भर में तुम्हारी हवेली में मेरी कदर होती थी। अब क्या?" में
चुपचाप वापस लौट आया। समझ गए, कलाकार के दिल में ठेस लगी है। वह नहीं
आ सकता। questions answer​

Answers

Answered by bhatiamona
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यह सेठ कहानी का पहरा है| सेठ कहानी  फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखी गई है|

सिरचन का चरित्र:

सेठ कहानी में ग्रामीण कलाकार के स्वाभिमान और आत्मगौरव का वर्णन किया है|  सिरचन बहुत निपुण कारीगर था| उसे मोथी घास और बांस की तितलियों की झिलमिलाती चिक , सतरंगे के मोढ़े की रस्सी की बड़े-बड़े जाले , ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी बनाता था|

सिरचन काम छोड़ क्यों आया और उसने काम के लिए मना क्यों किया?

सिरचन एक स्वाभिमानी कलाकर था| वह गरीब था, लेकिन किसी का तिरस्कार सहन नहीं करता था| वह अपना अपमान नहीं सहन कर सकता था|  लेखक की मंझली भाभी और मानु की चाची के द्वारा तिरस्कृत होने पर काम अधूरा छोड़कर चला गया था| कलाकार के दिल में ठेस लगी है।

Answered by Anonymous
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Answer:

सिरचन

Explanation:

सिरचन एक बेहद मेहनती मजदूर था।

बोहोत गरीब मगर स्वाभिमानी व्यक्ति था।

हालांकि उससे गांव के ठाकुर का परिवार उसके काम का मुरीद था।उसके लिए काम कि हर कोई तारीफ करता था मगर ठाकुर की पत्नी और बहुएं उससे चिड़ती थे क्यूंकि वो बोहोत चटोरे थे।एक बार किसी ने कोई बात के दी और बात सिरचन के हृदय में ठेस केर गई।उसने हवेली पर जाना ही बंद केर दिया।

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