Hindi, asked by sanjaygiri9088, 1 month ago

मौसम चक्र में परिवर्तन के क्या दुष्परिणाम दिखाई देते हैं​

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Answered by ankitaayadav0411
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मौसम चक्र-परिवर्तन एक बड़ी समस्या है जो मानव की बढ़ती क्रियाओं से उत्पन्न होती है

तथा तथा इससे स्वास्थ्य पर कई प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव पड़ते हैं। जीवाश्म ईंधन का

जलना, उद्योग-धंधों की संख्या में वृद्धि तथा व्यापक पैमाने पर पेड़ों की कटाई हरितगृह

गैसों (जमजड़) के वायुमंडल में जमा होने के कुछ कारण हैं। IPCC(जलवायु-परिवर्तन के अन्तर-सरकारी पैनल) के अनुसार कार्बन डाई-आक्साइड और अन्य हरितगृह गैसों

(जमजड़) जैसे मिथेन, ओज़ोन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन की वायुमंडल

में वृद्धि से यह अनुमान लगाया जाता है कि विश्व का औसत तापमान 1.50 सेल्सियस से

4.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इसके विपरित इससे वर्षा और बर्फ गिरने में

बदलाव, अधिक प्रचण्ड अथवा निरन्तर अकाल, बाढ़, तूफान तथा समुद्री सतह का ऊपर

उठना आदि स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। जलवायु- परिवर्तन के हानिकारक प्रभाव क्षेत्र बहुत व्यापक है जैसे हृदय-संबंधी बीमारियाँ मृत्यु-दर, निर्जलन (dehydration), संक्रामक बीमारियों का फैलना, कुपोषण, तथा स्वास्थ्य क्षीण करना। इसीलिए, हमें इस जलवायु-परिवर्त्तन को रोकने के लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए।

प्रत्यक्ष प्रभाव

मौसम का हमारी सेहत पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि पूरा जलवायु गर्म हो जाए तब स्वास्थ्य की समस्याएँ बढ़ेंगी। यह महसूस किया जा रहा है कि गर्म हवाओं के तेज़ होने और उनकी प्रचण्डता से तथा दूसरी मौसमी घटनाओं से मृत्युदर में वृद्धि होगी वृद्ध, बच्चे और वे लोग जो श्वसन और हृदय-संबंधी रोग से पीड़ित हैं, उन पर संभवतः ऐसे मौसम का ज्यादा असर होगा क्योंकि उनमें सहने की क्षमता कम है। तापमान में वृद्धि का असर नगर में रहने वाले लोगों पर गाँव में रहने वालों की अपेक्षा ज्यादा पड़ेगा। यह "ऊष्माद्वीप" के कारण होता है क्योंकि यहाँ कंकड़ और तारकोल से बनी सड़कें हैं। नगरों में अधिक तापमान के कारण ओजोन के धरातलीय स्तर में वृद्धि होगी जिससे वायुप्रदूषण जैसी समस्याएँ बढ़ेंगी।

अप्रत्यक्ष प्रभाव

अप्रत्यक्ष रूप से, मौसम के रूप में परिवर्तन पारिस्थितकी गड़बड़ी पैदा कर सकता है, भोज्य पदार्थों के (खाद्यान्न) उत्पादन स्तर में बदलाव, मलेरिया तथा अन्य संक्रामक बीमारियाँ बीमारियां जलवायु में परिवर्त्तन, खास कर तापमान, वष्टिपात तथा आर्द्रता में उतार-चढ़ाव जैविक अवयवों तथा उन प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं जो संक्रामक बीमारियों के फैलने से जुड़ी हैं।

उच्च तापमान के कारण समुद्री-स्तर ऊपर उठेगा जिससे भूक्षरण (अपरदन) होगा तथा महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र जैसे बरसाती भूमि (wetlands) और प्रवाल-भित्ति को क्षति पहुँचाएगा। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव, प्रचण्ड बाढ़ के कारण मृत्यु और चोट के रूप में आ सकता है। तापमान बढ़ाने का अप्रत्यक्ष नतीजा भूमिगत जलतंत्र में परिवर्तन के रूप में होगा, साथ ही तटीय रेखा, जैसे खारे जल का, भूमिगत जल तथा बरसाती भूमि में जाने से प्रवाल-भित्ति में क्षय तथा निचले प्रदेशों में अपवहन-तंत्र को नुकसान होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा जिससे वायुमंडलीय रासायनिक प्रतिक्रिया तेज़ हो जाएगी तथा तापमान बढ़ाने के कारण प्रकाश रासायनिक उपचायक (oxidants) उत्पन्न होंगे।

बीमारियाँ

हरितगृह गैस प्रभाव के कारण ही समतापमंडलीय ओज़ोन परत का क्षय हो रहा है जो सूर्य की हानिकारक किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है। समतापमंडलीय ओज़ोन के क्षय से सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें बड़ी मात्रा में पृथ्वी पर पहुँचती हैं, जिससे श्वेत वर्ण के लोगों में त्वचा कैंसर जैसी बीमारियाँ होती हैं। इसकी वजह से बहुत-सारे लोग मोतियाबिंद जैसी आँख की बीमारियों से पीड़ित होंगे। ऐसा अनुमान है कि यह प्रतिरक्षक-तंत्र (बीमारियों से रक्षा करने वाले तंत्र) को भी भी समाप्त कर सकता है।

विश्व में गर्मी बढ़ने के कारण उन क्षेत्रों में वृद्धि होगा जहाँ बीमारी फैलाने वाले कीड़े जैसे मच्छर आदि उत्पन्न होंगे जिससे संक्रमण तेज़ी से फैलेगा।

समुद्री-स्तर बढ़ने के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुछ संभावित प्रभाव हैं:-

बाढ़ की वज़ह से मृत्यु तथा क्षति;

खारे पानी के प्रवेश के कारण शुद्ध जल की उपलब्धता में कमी।

प्रदूषण फैलाने वाले कूड़े कचड़े जो पानी में डूबे रहते हैं, इनके माध्यम से जल आपूर्ति का संदूषण

बीमारी फैलाने वाले कीड़ों में बदलाव

कृषिभूमि के क्षय के कारण पोषक-तत्व प्रभावित होंगे तथा मछली-पकड़ने में अंतर आएगा तथा

जनसंख्या विस्थापन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ

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