Science, asked by atulp077, 5 months ago

मौसम हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है​

Answers

Answered by drishty96
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Answer:

hey mate here's the solution for your doubt......

Explanation:

मौसम केवल हमारे दैनिक कार्यकलापों को ही प्रभावित नहीं करता, वरन् वह हमारे भोजन, वस्त्र, रहन-सहन आदि के तरीकों और यहां तक कि हमारे स्वभाव को भी बदल देता है। ठंडे, बर्फीले प्रदेशों और गर्म क्षेत्रों के निवासियों के भोजन, वस्त्र और रहन-सहन के तरीकों में अत्यधिक अन्तर होता है। सूखे, मरुस्थल प्रदेश के लोग उस भांति नंगे बदन नहीं रह पाते जैसे भूमध्यरैखिक प्रदेशों के लोग, जहां वर्ष भर वर्षा होती है। कहा जाता है कि ब्रिटेन के निवासियों को अच्छा नाविक बनाने में वहां के उस मौसम का बहुत हाथ है जो उसके इर्द-गिर्द के सागरों को कड़ाके की ठंड में भी जमने नहीं देता। यह मौसम कोष्ण जलधारा, गल्फ स्ट्रीम, द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में लायी जाने वाली ऊष्मा के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।

गर्म और सूखे राजस्थान के लोगों का हठीला स्वभाव और उनकी जुझारु प्रकृति रेगिस्तान के मौसम का ही परिणाम है। बंगाल और केरल के निवासियों की संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में रुचि की पृष्ठभूमि में वहां के मौसम का स्पष्ट आभास है।

मौसम “इतिहास का निर्माता” भी रहा है और उसने अनेक युद्धों को निर्णायक रूप से प्रभावित भी किया है। रूस के जार का यह कथन कि “मेरे दो सेनापति, जनवरी और फरवरी, मुझे कभी धोखा नहीं देते” अतिश्योक्ति नहीं थी। वहां इन दो माहों में इतनी कड़ाके की ठंड पड़ती है कि अन्य ठंडे देशों के निवासी भी उसे सहन नहीं कर पाते। नेपोलियन, जिसे विश्व का सर्वाधिक कुशल सेनापति माना जाता था, अपनी विजय के उन्माद में जार का यह कथन भूल गया और रूस को पूर्ण रूप से पद्दलित करने की इच्छा से आगे बढ़ता ही गया। अन्त में उसे इन रूसी “सेनापतियों” का सामना करना पड़ा और परिणाम हुआ उसकी सेना की भीषण तबाही और शर्मनाक वापसी। इसी प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की सेनाओं को भी रूसी सर्दी का शिकार होकर पीछे हटना पड़ा था और अंत में पराजय का मुंह देखना पड़ा था।

द्वितीय विश्वयुद्ध की ही एक और महत्वपूर्ण घटना को भी मौसम ने अत्यधिक प्रभावित किया था। वह थी मित्र सेनाओं का नॉरमंडी (फ्रांस के तट) पर अवतरण। वर्ष 1942 के बाद जर्मन सेनाओं को निरन्तर पीछे हटना पड़ रहा था और 1944 तक पीछे हटते-हटते वे यूरोप में ही वापस आ गयी थीं। उस समय मित्र राष्ट्रों ने “दूसरा” मोर्चा खोलने के उद्देश्य से नॉरमंडी में, जो उस समय तक जर्मनी के कब्जे में था, अपनी सेनाएं उतारने की योजना बनाई। वे मई, जून तथा जुलाई महीनों में किसी भी समय जब मौसम उपयुक्त हो और सागर में ऊंचे ज्वार व लहरे न उठ रही हों, इस योजना को कार्यान्वित करना चाहते थे। इसलिए मित्र राष्ट्रों के उच्च कमान ने मौसम विशेषज्ञों से सलाह मांगी। इसके लिए उन्होंने दो तारीखें सुझायीं- 5 जून और 20 जून। उच्च कमान ने 5 जून को चुना। पर उस दिन सब पूर्वानुमानों को झुठला कर तेज तूफान आ गया। इसलिए सेना उतारने के कार्य को अगले दिन, यानी 6 जून, के लिए स्थगित कर दिया गया।

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