मो सम कौन कुटिल खल कामी। तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबके अंतरजामी। जो तन दियौ ताहि विसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी। भरि भरि द्रोह विषै कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी। सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषियिनि सँग विसरामी। श्रीहरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की निसि-दिन करत गुलामी। पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितनि मैं नामी। सूरदास प्रभु अधम उधारन सुनियै श्रीपति स्वामी।।।
व्याख्या - दिजीये
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mujhsa koi kutil ya kapti nahi hai woh aapse nahi chipa hai aap hamari dasha ke bare me jante hain
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मो सम कौन कुटिल खल
कामी।
तुम सौं कहा छिपी
करुनामय,सब के अंतरजामी।
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ,
ऐसौ नोनहरामी।
भरि भरि द्रोह विषय कौं
धावत, जैसैं सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस,
बिषयिनि सँ बिसरामी।
श्रीहरि-चरन छाँड़ि विमुखनि
की, निसिदिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम, अपराधी,
सब पतितन मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम-उधारन,
सुनियै श्रीपति स्वामी।।
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• प्रस्तुत पंक्ति ' सूरदास जी ' द्वारा रचित है ।
व्याख्या
यहां कवि कहते है कि है प्रभु मैं
तो कुटिल अर्थात् चालबाज हूं ,
परन्तु आप तो करुण हृदय वाले
हो । आप तो सबके अन्तर्यामी हो ।
फिर कहता है कि जैसे पता चलता
है कि कहीं सत्संग हो रहा है , वहां
लोग जाने के लिए आलस्य दिखाते
है । प्रभु के शरण को जिसने भी
छोड़ दिया है वह , उदासीनता
कि ही गुलामी कर रहा है । अतः
है प्रभु ! मैं अधम हूं ,मुझे अपने
शरण में ले लीजिए ।
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